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________________ पत्रचम अध्ययन : शैलक ] २६--तए णं से थावच्चापुत्ते अन्नया कयाई अरहं अरिटुनेमि वंदह नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता एवं पयासी------'इच्छामि णं भंते ! तुडभेहि अभणुनाए समाणे सहस्सेणं अणगारेणं सद्धि बहिया जणवयविहारं विहरित्तए / ' 'अहासुहं देवाणुप्पिया!' तत्पश्चात् थावच्चापुत्र ने एक बार किसी समय अरिहन्त अरिष्टनेमि की वंदना की और नमस्कार किया / बन्दना और नमस्कार करके इस प्रकार कहा-'भगवन् ! आपकी प्राज्ञा हो तो मैं हजार साधुओं के साथ जनपदों में विहार करना चाहता हूँ।' भगवान् ने उत्तर दिगा—'देवानुप्रिय ! तुम्हें जैसे सुख उपजे वैसा करो।' २७–तए णं से थावच्चापुत्ते अणगारसहस्सेणं सद्धि (तेणं उरालेणं उदग्गेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं) बहिया जणवयविहारं विहरइ / भगवान् की अनुमति प्राप्त करके थावच्चापुत्र एक हजार अनगारों के साथ (उस प्रधान, तीव्र प्रयत्न वाले--प्रमादरहित और बहुमानपूर्वक ग्रहण किये हुए चारित्र एवं तप से युक्त होकर) बाहर जनपदों (विभिन्न देशों) में विचरण करने लगे / शैलक राजा श्रावक बना २८-तेणं कालेणं तेणं समएणं सेलगपुरे नाम नयरे होत्था, सुभूमिभागे उज्जाणे, सेलए राया, पउमावई देवी, मंडुए कुमारे जवराया। तस्स णं सेलगस्स पंथगपाभोक्खा पंच मंतिसया होत्था, उप्पत्तियाए वेणइयाए पारिणामियाए कम्मियाए चउविहाए बुद्धीए उववेया रज्जधुचितया वि होत्था / / तए णं थावच्चापुत्ते अणगारे सहस्सेणं अणगारेणं सद्धि जेणेव सेलगपुरे जेणेव सुभूमिभागे नामं उज्जाणे तेणेव समोसढे / सेलए वि राया विणिग्गए। धम्मो कहिओ। _उस काल और उस समय में शैलकपुर नामक नगर था। उसके बाहर सुभूमिभाग नामक उद्यान था / शैलक वहाँ का राजा था / पद्मावती रानी थी। उनका मंडुक नामक कुमार था। वह युवराज था। उस शैलक राजा के पंथक आदि पाँच सौ मंत्री थे। वे अौत्पत्तिकी वैनयिकी पारिणामिकी और कार्मिकी इस प्रकार चारों तरह की बुद्धियों से सम्पन्न थे और राज्य की धुरा के चिन्तक भी थे--शासन का संचालन करते थे / थावच्चापुत्र अनसार एक हजार मुनियों के साथ जहाँ शैलकपुर था और जहाँ सुभूमिभाग नामक उद्यान था, वहाँ पधारे / शैलक राजा भी उन्हें वन्दना करने के लिए निकला / थावच्चापुत्र ने धर्म का उपदेश दिया / २९--धम्म सोच्चा 'जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरण्णं 1. चार प्रकार की बुद्धियों का स्वरूप जानने के लिए देखें प्रथम अध्ययन, मूत्र 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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