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________________ पञ्चम अध्ययन : शैलक ] [ 155 अत्यन्त कौशल के साथ उत्तर दिए / प्रश्नोत्तरों का उल्लेख मूल पाठ में पाया है / अन्त में शुक परिव्राजक, थावच्चापुत्र के शिष्य बन गए / शुक के भी एक हजार शिष्य थे। उन्होंने भी अपने गरु का अनुसरण किया--बे भी साथ ही दीक्षित हो गए / ___ शुक अनगार एक बार किसी समय शैलकपुर पधारे / वहाँ का राजा शैलक पहले ही थावच्चापुत्र के उपदेश से श्रमणोपासक धर्म अंगीकार कर चुका था। इस बार वह अपने पांच सौ मंत्रियों के साथ दीक्षित हो गया / उसका पुत्र मंडुक राजगद्दी पर बैठा / / शैलकमुनि साधुचर्या के अनुसार देश-देशान्तरों में विचरण करने लगे। उनके गुरु शुकमुनि तब विद्यमान नहीं थे-सिद्धिलाभ कर चुके थे / शैलक राजर्षि का सुखों में पला सुकोमल शरीर साधु-जीवन को कठोरता को सहन नहीं कर सका / शरीर में दाद-खाज हो गई, पित्तज्वर रहने लगा, जिसके कारण वे तीव्र वेदना से पीड़ित हो गए। भ्रमण करते-करते शैलकपुर में पधारे / उनका पुत्र मंडुक राजा उपासना के लिए उपस्थित हुा / उसने राजर्षि शैलक के रोगग्रस्त शरीर को देखकर यथोचित चिकित्सा करवाने की प्रार्थना की। शैलक ने स्वीकृति दी / चिकित्सा होने लगी। विस्मय का विषय है कि चिकित्सकों ने इन्हें मद्यपान का परामर्श दिया और वे मद्यपान करने भी लगे। मद्यपान जब व्यसन का रूप ग्रहण कर लेता है तो व्यक्ति कितना ही विवेकशाली और किसी भी पद पर प्रतिष्ठित क्यों न हो, उसका अधःपतन हए बिना नहीं रहता / राजषि मद्यपान के प्रभाव से साधुत्व को भूल गए और सरस भोजन एवं मद्यपान में मस्त रहने लगे। वहाँ से अन्यत्र जाने का विचार तक न आने लगा / तब उनके साथी मुनियों ने एकत्र होकर, एक अनगार पंथक को, जो गृहस्थावस्था में उनका मुख्यमंत्री था, उनकी सेवा में छोड़कर स्वयं विहार कर जाने का निर्णय किया। वे विहार कर गए, राजर्षि वहीं जमे रहे / कात्तिकी चौमासी का दिन था / शैलक आहार-पानी करके खुब मदिरापान करके सुखपूर्वक सोये पड़े थे। उन्हें अावश्यक क्रिया करने का स्मरण तक न था। पंथक मुनि चातुर्मासिक प्रतिक्रमण करने को उद्यत हए और शैलक के चरणों से अपने मस्तक का स्पर्श किया / शैलक की निद्रा भंग हो गई और वे क्रोध में प्राग बबूला हो उठे। पंथक को कटु और कठोर शब्द कहने लगे। पंथक मुनि ने क्षमा-प्रार्थना करते हुए कात्तिकी चौमासी की बात कही / राजर्षि की धर्म-चेतना जागत हो उठी। सोचा-राज्य का परित्याग करके मैंने साधुत्व अंगीकार किया और अब ऐसा प्रमत्त एवं शिथिलाचारी हो गया हूँ ! साधु के लिए यह सब अशोभन है। दूसरे ही दिन उन्होंने शैलकपुर छोड़ दिया। पंथक मुनि के साथ विहार कर चले गए / यह समाचार जानकर उनके सभी शिष्य-साथी मुनि उनके साथ प्रा मिले / अन्तिम समय में सभी मुनियों ने सिद्धि प्राप्त की। इस अध्ययन में मुनि-जीवन एवं उनके पारस्परिक संबंध कैसे हों, इसके संबंध में गहरी मोमांसा एवं विचारणा करने की सामग्री विद्यमान है / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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