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________________ चाउत्थं अज्झयण : कुम्मे जंबू स्वामी का प्रश्न १-जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं नायाणं तच्चस्स नायज्झयणस्स अयमठे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं णायाणं के अढे पन्नत्ते? श्री जम्बू स्वामी अपने गुरुदेव श्री सुधर्मा स्वामी से प्रश्न करते हैं—'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान महावीर ने ज्ञात अंग के तृतीय अध्ययन का यह (पूर्वोक्त) अर्थ फरमाया है तो चौथे ज्ञातअध्ययन का क्या अर्थ फरमाया है ?' सुधर्मा स्वामी का उत्तर २–एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नाम नयरी होत्था, वन्नओ'तीसे णं वाणारसीए नयरीए बहिया उत्तर-पुरच्छिमे दिसिभागे गंगाए महानदीए मयंगतीरद्दहे नामं दहे होत्या, अणपुव्व-सुजाय-वप्प-गंभीर-सीयल-जले अच्छ-विमल-सलिल-पलिच्छन्ने संछन्नपत्त-पुप्फ-पलासे बहउष्पल-पउम-कुमुय-नलिस-सुभग-सोगंधिय-पुंडरीय-महापुंडरीय-सयपत्त-सहस्सपत्त-केसर-पुप्फोवचिए पासाईए दरिसणिज्जे अभिरूवे पडिरूवे / श्री सुधर्मा स्वामी जम्बू स्वामी के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहते हैं-हे जम्बू ! उस काल और उस समय में वाणारसी (बनारस) नामक नगरी थी / यहाँ उसका वर्णन औपपातिक सूत्र के नगरी-वर्णन के समान कहना चाहिए। उस वाणारसी नगरी के बाहर गंगा नामक महानदी के ईशान कोण में मृतगंगातीरहद नामक एक हद था। उसके अनुक्रम से सुन्दर सुशोभित तट थे। उसका जल गहरा और शीतल था। हद स्वच्छ एवं निर्मल जल से परिपूर्ण था / कमलिनियों के पत्तों और फलों की पांखड़ियों से आच्छादित था / बहुत से उत्पलों (नीले कमलों), पद्मों (लाल कमलों), कुमुदों (चन्द्रविकासी कमलों), नलिनों तथा सुभग, सौगंधिक, पुण्डरीक, महापुण्डरीक, शतपत्र, सहस्रपत्र आदि कमलों से तथा केसरप्रधान अन्य पुष्पों से समृद्ध था / इस कारण वह अानन्दजनक, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप था। ३–तत्थ णं बहूणं मच्छाण य कच्छपाण य गाहाण य मगराण य सुसुमाराण य सइयाण य साहस्सियाण य सयसाहस्सियाण य जूहाई निन्भयाई निरुश्विग्गाई सुहंसुहेणं अभिरममाणाई अभिरममाणाई विहरंति। उस हद में सैकड़ों, सहस्रों और लाखों मत्स्सों कच्छों, ग्राहों, मगरों और सुसुमार जाति के जलचर जीवों के समूह भय से रहित, उद्वेग से रहित, सुखपूर्वक रमते-रमते विचरण करते थे। 1. औपपातिकसून 1. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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