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________________ [ 119 द्वितीय अध्ययन : संघाट ] २४---तए णं से पंथए दासचेडे तओ मुहत्तंतरस्स जेणेव देवदिन्ने दारए ठविए तेणेव उवागच्छइ / उवागच्छित्ता देवदिन्नं दारयं तंसि ठाणंसि अपासमाणे रोयमाणे कंदमाणे विलवमाणे देवदिन्नदारगस्स सब्बओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ / करिता देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुई वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे, जेणेव धण्णे सत्थवाहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता धण्णं सत्थवाहं एवं बयासी—'एवं खलु सामी! भद्दा सत्थवाही देवदिन्नं दारयं बहाय जाव' मम हत्थंसि दलयइ / तए णं अहं देवदिन्नं दारयं कडीए गिण्हामि / गिहित्ता जाव' मग्गणगवेसणं करेमि, तं न गज्जइ णं सामी! देवदिन्ने दारए केणइ गीए वा अवहिए वा अवखित्ते वा / पायवडिए धण्णस्स सत्थवाहस्स एयमट्ठ निवेदेइ / तत्पश्चात् वह पंथक नामक दास चेटक थोड़ी देर बाद जहाँ बालक देवदत्त को बिठलाया था, वहाँ पहुँचा / पहुँचने पर उसने देवदत्त बालक को उस स्थान पर न देखा / तब वह रोता, चिल्लाता, विलाप करता हुआ सब जगह उसकी ढूढ़-खोज करने लगा। मगर कहीं भी उसे बालक देवदत्त की खबर न लगी, छींक वगैरह का शब्द न सुनाई दिया, न पता चला / तब वह जहाँ अपना घर था और जहाँ धन्य सार्थवाह था, वहाँ पहुँचा / पहुँच कर धन्य सार्थवाह से इस प्रकार कहने लगा-स्वामिन् ! भद्रा सार्थवाही ने स्नान किए हुए, बलिकर्म किये हुए, कौतुक, मंगल, प्रायश्चित्त किए हुए और सभी अलंकारों से विभूषित बालक को मेरे हाथ में दिया था। तत्पश्चात् मैंने बालक देवदत्त को कमर में ले लिया / लेकर (बाहर ले गया, एक जगह बिठलाया। थोड़ी देर बाद वह दिखाई नहीं दिया) यावत् सब जगह उसको ढूढ़-खोज की, परन्तु नहीं मालम स्वामिन् ! कि देवदत्त बालक को कोई मित्रादि अपने घर ले गया है, चोर ने उसका अपहरण कर लिया है अथवा किसी ने ललचा लिया है ? इस प्रकार धन्य सार्थवाह के पैरों में पड़कर उसने यह वृत्तान्त निवेदन किया। २५-तए णं से धण्णे सत्यवाहे पंथयदासचेडगस्स एयम8 सोच्चा णिसम्म तेण य महया पुत्तसोएणाभिभूए समाणे परसुणियत्ते व चंपगपायवे धसत्ति धरणीयलंसि सव्वंगेहि सन्निवइए। धन्य सार्थवाह पथक दास चेटक की यह बात सुनकर और हृदय में धारण करके महान् पुत्रशोक से व्याकुल होकर, कुल्हाड़े से काटे हुए चम्पक वृक्ष की तरह पृथ्वी पर सब अंगों से धड़ाम से गिर पड़ा-मूछित हो गया। गोषणा २६-तए णं से धण्णे सत्थवाहे तो मुहत्तरस्स आसत्थे पच्छागयपाणे देवदिन्नस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ / देवदिन्नस्स दारगस्स कत्थइ सुई वा खुइं वा पत्ति वा अलभमाणे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता महत्थं पाहुडं गेण्हइ / गेण्हित्ता जेणेव नगरगुत्तिया तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता तं महत्थं पाहुडं उवणेइ, उवणइत्ता एवं वयासीएवं खलु देवाणुप्पिया ! मम पुत्ते भद्दाए भारियाए अत्तए देवदिन्ने नामं दारए इ8 जाव उंबरपुष्र्फ पिव दुल्लहे सवणयाए किमंग पुण पासणयाए ? 1. द्वि. अ. सूत्र 22 2. द्वि. प्र. 22. 3. प्र. भ. सूत्र 121 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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