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________________ [ ज्ञाताधर्मकथा १५-तए णं सा भद्दा सत्थवाही धण्णणं सत्यवाहेणं अन्भणुन्नाया समाणी हट्ठा जाव विउलं असणपाणखाइमसाइमं जाव उवक्खडावेइ, उवक्खडावेत्ता व्हाया जाव (कयबलिकम्मा) उल्लपडसाडगा जेणेव णागघरए जाव' धवं दहइ / दहिता पणामं करेइ, पणामं करेत्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ। तए णं ताओ मित्त-नाइ जाव नगरमहिलाओ भई सत्यवाहि सव्वालंकार-विभूसियं करेइ / तए णं सा भद्दा सत्थवाही ताहि मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजण-णगरमहिलियाहि सद्धि तं विउलं असणपाणखाइमसाइमं जाव परिभुजेमाणी य दोहलं विणेइ। विणित्ता जामेव दिसि पाउन्भूया तामेव दिसि पडिगया। तत्पश्चात् धन्य सार्थवाह से प्राज्ञा पाई हुई भद्रा सार्थवाही हृष्ट-तुष्ट हुई / यावत् विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम तैयार करके यावत् स्नान तथा बलिकर्म करके यावत् पहनने और ओढ़ने का गीला वस्त्र धारण करके जहाँ नागायतन आदि थे, वहाँ आई / यावत् धूप जलाई तथा बलिकर्म एवं प्रणाम किया। प्रणाम करके जहाँ पुष्करिणी थी, वहाँ आई। आने पर उन मित्र, ज्ञाति यावत् नगर की स्त्रियों ने भद्रा सार्थवाही को सर्व आभूषणों से अलंकृत किया। __ तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही ने उन मित्र, ज्ञाति, निजक, स्वजन, सम्बन्धी, परिजन एवं नगर की स्त्रियों के साथ विपुल प्रशन, पान, खादिम और स्वादिम का यावत् परिभोग करके अपने दोहद को पूर्ण किया। पूर्ण करके जिस दिशा से वह पाई थी, उसी दिशा में लौट गई / पुत्र-प्रसव १९-तए णं सा भद्दा सत्यवाही संपुन्नडोहला जाव' तं गम्भं सुहंसुहेणं परिवहइ। तए णं सा भद्दा सत्थवाही गवण्हं मासाणं बहुपडिपुन्नाणं अद्धट्ठमाण राईदियाणं सुकुमालपाणि-पायं जाव सव्वंगसुदरंगं दारगं पयायां / तत्पश्चात् भद्रा सार्थवाही दोहद पूर्ण करके सभी कार्य सावधानी से करती तथा पथ्य भोजन करती हुई यावत् उस गर्भ को सुखपूर्वक वहन करने लगी। तत्पश्चात् उस भद्रा सार्थवाही ने नौ मास सम्पूर्ण हो जाने पर और साढ़े सात दिन-रात व्यतीत हो जाने पर सुकुमार हाथों-पैरों वाले बालक का प्रसव किया। देवदत्त-नामकरण २०–तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे जातकम्मं करेन्ति, करिता तहेव जाव' विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावेति, उवक्खडावित्ता तहेव मित्तनाइ० भोयावेत्ता अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फण्णं नामधेज्ज करेंति--'जम्हा णं अम्हं इमे दारए बहूणं नागपडिमाण य जाव' वेसमणपडिमाण य उवाइयलद्धे गं तं होउ णं अम्हं इमे दारए देवदिन्ननामेणं / ' तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं च अणुवड्ढेन्ति / तत्पश्चात् उस बालक के माता-पिता ने पहले दिन जातकर्म नामक संस्कार किया। करके उसी प्रकार यावत् (दूसरे दिन जागरण, तीसरे दिन चन्द्र-सूर्यदर्शन, आदि लोकाचार किया / सूतक 1. द्वि. अ. सूत्र 15 2. प्र. प्र. सूत्र 86 3. प्र.अ. सूत्र 93-95 4. द्वि. अ. सूत्र 12. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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