SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 70 ] [ज्ञाताधर्मकथा जाव दुरूहइ / दुरूहित्ता मेहस्स कुमारस्स पुरतो पुरथिमेणं चंदप्पभ-वइर-वेरुलिय-विमलदंडं तालावट गहाय चिट्ठइ। तत्पश्चात् मेघकुमार के समीप शृगार के प्रागार रूप यावत् उचित उपचार करने में कुशल एक उत्तम तरुणो यावत् शिविका पर आरूढ हुई। आरूड होकर मेघकुमार के पास पूर्व दिशा के सन्मुख चन्द्रकान्त मणि वज्ररत्न और वैडूर्यमय निर्मल दंडी वाले पंखे को ग्रहण करके खड़ी हुई / 150. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स एगा वरतरुणी जाव सुरूवा सीयं दुरूहइ, दुहिता मेहस्स कुमारस्स पुव्वदक्खिणेणं सेयं रययामयं विमलसलिलपुन्नं मत्तगयमहामुहाकिइसमाणं भिगारं गहाय चिट्ठइ। तत्पश्चात् मेधकुमार के समीप एक उत्तम तरुणी यावत् सुन्दर रूप वाली शिविका पर आरूढ हुई / प्रारूढ होकर मेधकुमार से पूर्वदक्षिण-आग्नेय-दिशा में श्वेत रजतमय निर्मल जल से परिपूर्ण, मदमाते हाथी के बड़े मुख के समान प्राकृति वाले भगार (झारी) को ग्रहण करके खड़ी हुई। 151. तए णं तस्स मेहस्स कुमारस्स पिया कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-- 'खिप्पामेव भो देवाणु पिया ! सरिसयाणं सरिसत्तयाणं सरिसव्वयाणं एगाभरणगहियनिज्जोयाणं कोडुबियवरतरुणाणं सहस्सं सद्दावेह / ' जाव सद्दावेन्ति / तए णं कोडुबियवरतरुणपुरिसा सेणियस्स रन्नो कोडुबियपुरिसेहि सद्दाविया समाणा हट्ठा व्हाया जाव एगाभरणगहियनिज्जोया जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छति / उवाच्छित्ता सेणियं रायं एवं वयासी-'संदिसह णं देवाणुप्पिया ! जं णं अम्हेहि करणिज्ज / तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने कौटुम्विक पुरुषों को बुलाया / बुला कर इस प्रकार कहा-'देवानुप्रियो ! शीघ्र ही एक सरीखे, एक सरीखी त्वचा (कान्ति) वाले, एक सरीखी उम्र वाले तथा एक सरीखे आभूषणों से समान वेष धारण करने वाले एक हजार उत्तम तरुण कौटुम्बिक पुरुषों को बुलायो।' यावत् उन्होंने एक हजार पुरुषों को बुलाया। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये गये वे एक हजार श्रेष्ठ तरुण सेवक हृष्ट-तुष्ट हुए / उन्होंने स्नान किया, यावत् एक से आभूषण पहन कर समान पोशाक पहनी। फिर जहाँ श्रेणिक राजा था, वहाँ आये। प्राकर श्रेणिक राजा से इस प्रकार बोले हे देवानुप्रिय ! हमें जो करने योग्य है, उसके लिए प्राज्ञा दीजिए। 152. तए णं से सेणिए तं कोडुबियवरतरुणसहस्सं एवं वयासी—'गच्छह णं देवाणुप्पिया ! मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणि सीयं परिवहेह / तए णं तं कोडुबियवरतरुणसहस्सं सेणिएणं रण्णा एवं वुत्तं संतं हढं तुळं तस्स मेहस्स कुमारस्स पुरिससहस्सवाहिणि सीयं परिवहति / तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने उन एक हजार उत्तम तरुण कौटुम्बिक पुरुषों से कहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy