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________________ प्रथम अध्ययन : उत्क्षिप्तज्ञात | बनाना और उनका उपयोग करना (30) गहने घड़ना, पहनना आदि (31) तरुणी की सेवा करनाप्रसाधन करना (32) स्त्री के लक्षण जानना (33) पुरुष के लक्षण जनना (34) अश्व के लक्षण जानना (35) हाथी के लक्षण जानना (36) गाय-बैल के लक्षण जानना (37) मुर्गों के लक्षण जानना (38) छत्र-लक्षण जानना (39) दंड-लक्षण जानना (40) खड्ग-लक्षण जानना (41) मणि के लक्षण जानना (42) काकणीरत्न के लक्षण जानना (43) वास्तुविद्या-मकान-दुकान आदि इमारतों की विद्या (44) सेना के पड़ाव के प्रमाण आदि जानना (45) नया नगर बसाने आदि की कला (46) व्यूह-मोर्चा बनाना (47) विरोधी के व्यूह के सामने अपनी सेना का मोर्चा रचना (48) सैन्यसंचालन करना (४९)प्रतिचार-शत्रसेना के समक्ष अपनी सेना को चलाना (50) चक्रव्यूह-चाक के आकार में मोर्चा बनाना (51) गरुड़ के आकार का व्यूह बनाना (52) शकटव्यूह रचना (53) सामान्य युद्ध करना (54) विशेषयुद्ध करना (55) अत्यन्त विशेष युद्ध करना (56) अट्टि (यष्टि या अस्थि) से युद्ध करना (57) मुष्टियुद्ध करना (58) बाहुयुद्ध करना (59) लतायुद्ध करना (60) बहुत को थोड़ा और थोड़े को बहुत दिखलाना (61) खड्ग की मूठ आदि बनाना (62) धनुष-बाण संबंधी कौशल होना (63) चाँदी का पाक बनाना (64) सोने का पाक बनाना (65) सूत्र का छेदन करना (66) खेत जोतना (67) कमल के नाल का छेदन करना (68) पत्रछेदन करना (69) कुडल आदि का छेदन करना (70) मृत (मूछित) को जीवित करना (71) जीवित को मृत (मृततुल्य) करना और (72) काक धूक आदि पक्षियों की बोली पहचानना। विवेचन--भारतवर्ष की प्रमुख तीनों धर्मपरम्पराओं के साहित्य में कलाओं के उल्लेख उपलब्ध होते हैं / वैदिक परम्परा के रामायण, महाभारत, शुक्रनीति, वाक्यपदीय आदि प्रधान ग्रन्थों में, बौद्ध परम्परा के ललितविस्तर में कलाओं का वर्णन किया गया है। किन्तु इनकी संख्या सर्वत्र समान नहीं है / कहीं कलाओं की संख्या 64 बतलाई गई है तो क्षेमेन्द्र ने अपने कलाविलास ग्रन्थ में सौ से भी अधिक का वर्णन किया है / बौद्ध साहित्य में इनकी संख्या 86 कही गई है / जैनसाहित्य में भी कलाओं का संख्या यद्यपि सर्वत्र समान नहीं है तथापि प्रायः पुरुषों के लिए 72 और महिलाओं के लिए 64 कलाओं का ही उल्लेख मिलता है। संख्या में यह जो भिन्नता है वह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है, क्योंकि कलाओं का संबंध शिक्षण के साथ है और एक का दूसरी में समावेश हो जाना साधारण बात है। ध्यान देने योग्य तो यह है कि कलाओं का चयन कितनी दूरदृष्टि से किया गया है / कलाओं के नामों को ध्यानपूर्वक देखने से स्पष्ट विदित हो जाता है कि इनको अध्ययन सत्र से, अर्थ के साथ तथा अभ्यासपूर्वक करने से जीवन में किस प्रकार की जागति उत्पन्न हो जाती है। ये कलाएँ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को स्पर्श करती हैं, इनके अध्ययन से जीवन को परिपूर्णता प्राप्त होती है / इनमें शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास की क्षमता निहित है। गीत, नृत्य जैसे मनोरंजन के विषयों की भी उपेक्षा नहीं की गई है। कारीगरी संबंधी समस्त शाखाओं का समावेश किया गया है तो युद्ध संबंधी बारीकियां भी शामिल की गई हैं। इनमें गणित विषय को प्रधान माना गया है। स्पष्ट है कि प्राचीन काल की शिक्षापद्धति जीवन के सर्वांगीण विकास में अत्यन्त सहायक थीं। इन कलाओं के स्वरूप को सन्मुख रखकर ग्राज की शिक्षानीति निर्धारित की जाए तो वह बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003474
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages660
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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