________________ 514] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 7. [1] चरिदियाणं भते ! कि उज्जोते, अंधकारे ? गोतमा ! उज्जोते वि, अंधकारे वि। [7-1 प्र.) भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों के क्या उद्योत है अथवा अन्धकार है ? [7-1 उ.] गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीवों के उद्योत भी है, अन्धकार भी है। [2] से कणद्वैगं० ? गोतमा ! चतुरि दियाणं सुभाऽसुभा पोग्गला, सुभाऽसुभे पोग्गलपरिणामे, से तेण8० / [7-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से चतुरिन्द्रिय जीवों के उद्योत भी है, अन्धकार भी है ? [7-2 उ.] गौतम ! चतुरिन्द्रिय जीवों के शुभ और अशुभ (दोनों प्रकार के) पुद्गल होते हैं, तथा शुभ और अशुभ पुद्गल परिणाम होते हैं, इसलिए ऐसा कहा जाता है, कि उनके उद्योत भी है और अन्धकार भी है। 8. एवं जाव' मणुस्साणं / [8] इसी प्रकार (तिर्यञ्चपञ्चेन्द्रिय और) यावत् मनुष्यों तक के लिए कहना चाहिए / 6. वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया जहा प्रसुरकुमारा। [9] जिस प्रकार असुरकुमारों के (उद्योत-अन्धकार) के विषय में कहा, उसी प्रकार बाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में भी कहना चाहिए। विवेचन-चौबीस दण्डक के जीवों के उद्योत-अन्धकार के विषय में प्ररूपणा - प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. 3 से 6 तक) में नैरयिक जीवों से लेकर वैमानिक देवों तक के उग्रोत और अन्धकार के सम्बन्ध में कारण-पूर्वक सैद्धान्तिक प्ररूपणा की गई है। उद्योत और अन्धकार के कारण : शुभाशुभ पुद्गल एवं परिणाम-क्यों और कैसे ?शास्त्रकार ने दिन में शुभ और रात्रि में अशुभ पुद्गलों का कारण प्रकाश और अन्धकार बतलाया है, इसके पीछे रहस्य यह है कि दिन में सूर्य की किरणों के सम्पर्क के कारण पुद्गल के परिणाम शुभ होते हैं, किन्तु रात्रि में सूर्यकिरण-सम्पर्क न होने से पुद्गलों का परिणमन अशुभ होता है। नरकों में पुद्गलों की शुभता के निमित्तभूत सूर्यकिरणों का प्रकाश नहीं है, इसलिए वहाँ अन्धकार है / पृथ्वीकायिक से लेकर त्रीन्द्रिय तक के जीव, जो मनुष्यक्षेत्र में हैं, और उन्हें सूर्यकिरणों आदि का सम्पर्क भी है, फिर भी उनमें अन्धकार कहा है, उसका कारण यह है कि उनके चक्षुरिन्द्रिय न होने से दृश्य वस्तु दिखाई नहीं देती, फलत: शुभ पुद्गलों का कार्य उनमें नहीं होता, उस अपेक्षा से उनमें अशुभ पुद्गल हैं; अत: उनमें अन्धकार ही है। चतुरिन्द्रिय जीवों से लेकर मनुष्य तक में शुभाशुभ दोनों पुद्गल होते हैं, क्योंकि उनके आँख होने पर भी जब रविकिरणादि का सद्भाव होता है, तब दृश्य पदार्थों के ज्ञान में निमित्त होने से उनमें शुभ पुद्गल होते हैं, किन्तु 1. यहाँ 'जाव' पद से तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों एवं मनुष्यों का ग्रहण करना चाहिए। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org