________________ 480 // [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] से गं भंते ! तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा? गोतमा ! णो इण8 सम8 नो खलु तत्थ सत्थं कमति / [3-2 प्र.] भगवन् ! उस धार पर प्रवगाहित होकर रहा हुमा परमाणुपुद्गल छिन्न या भिन्न हो जाता है ? [3-2 उ.] गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है / परमाणुपुद्गल में शस्त्र क्रमण (प्रवेश) नहीं कर सकता। 4. एवं जाव असंखेज्जपएसियो। [4] इसी तरह (द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर) यावत् असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक समझ लेना चाहिए। (निष्कर्ष यह है कि एक परमाणु से असंख्यप्रदेशी स्कन्ध तक किसी भी शस्त्र से छिन्नभिन्न नहीं होता, क्योंकि कोई भी शस्त्र इसमें प्रविष्ट नहीं हो सकता)। 5. [1] अणंतपदेसिए णं भंते ! खंधे प्रसिधारं वा खुरधारं वा प्रोगाहेज्जा ? हंता, प्रोगाहेज्जा। [5-1 प्र. भगवन् ! क्या अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तलवार की धार पर या क्षुरधार पर अवगाह्न करके रह सकता है ? [5-1 उ.] हाँ, गौतम ! वह रह सकता है / [2] से णं तत्थ छिज्जेज्ज वा भिज्जेज्ज वा ? गोयमा ! अत्यंगइए छिज्जैज्ज वा भिज्जेज्ज वा, अस्थेगइए नो छिज्जेज्ज वा नो भिज्जेज्ज वा। [5-2 प्र.] भगवन् ! क्या तलवार की धार को या क्षुरधार को अवगाहित करके रहा हुआ . अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न या भिन्न हो जाता है ? [5-2 उ.] हे गौतम ! कोई अनन्तप्रदेशी स्कन्ध छिन्न या भिन्न हो जाता है, और कोई न छिन्न होता है, न भिन्न होता है। 6. एवं प्रगणिकायस्स मझमझेणं / तहिं गवरं 'झियाएज्जा' माणितन्वं / [6] जिस प्रकार छेदन-भेदन के विषय में प्रश्नोत्तर किये गए हैं, उसी तरह से 'अग्निकाय के बीच में प्रवेश करता है। इसी प्रकार के प्रश्नोत्तर एक परमाणुपुद्गल से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के कहने चाहिए। किन्तु अन्तर इतना ही है कि जहाँ उस पाठ में सम्भावित छेदन-भेदन का कथन किया है, वहाँ इस पाठ में 'जलता है' इस प्रकार कहना चाहिए। 7. एवं पुक्खलसंवट्टगस्स महामेहस्स मज्झमझेणं / तहि 'उल्ले सिया'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org