SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2358
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 160] fাহামৱস্থি 110. सो चेव अप्पणा उक्कोसकालद्वितीयो जानो, तस्स वि तिसु वि गमएम इमं णाणत्तंसरीरोगाहणा जहन्नेणं पंच धणुसयाई, उक्कोसेण वि पंच धणुसयाई; ठिती जहन्नेणं पुन्वकोडी, उक्कोसेण वि पुवकोडी; एवं अणुबंधो वि / सेसं जहा पढमगमए, नवरं नेरइयठिति कायसंवेहं च जाणेज्जा [सु० 110 सत्तम-अट्ठम-नवमगमा] / [110] यदि वह मनुष्य स्वयं उत्कृष्ट स्थिति वाला हो और शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरपिकों में उत्पन्न हो, तो उसके भी तीनों गमकों (शर्कराप्रभापृथ्वीनै रयिकों में, जघन्य स्थिति बाले श. प्र. नरयिकों में और उत्कृष्ट स्थिति वाले श. प्र. नैरयिकों में उत्पन्न होने सम्बन्धी गमक) में विशेषता इस प्रकार है उनके शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की होती है। उनकी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट भी पूर्वकोटिवर्ष की होती है / इसी प्रकार अनुबन्ध भी समझना। शेष सब प्रथम गमक के समान है। विशेषता यह है कि नैरयिक की स्थिति और कायसंवेध तदनुकूल जानना चाहिए / [सू. 110 सातवां-पाठवाँ-नौवाँ गमक] विवेचन-शर्कराप्रभापृथ्वी में उत्पत्ति आदि सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-दो रत्नि (हाथ) से कम की अवगाहना वाले और दो वर्ष से कम आयुष्य वाले मनुष्य दूसरी शर्कराप्रभापृथ्वी में उत्पन्न नहीं होते। प्रथम-द्वितीय-तृतीय गमक में नानात्व कथन- (1) प्रोधिक मनुष्य की औधिक नारकों में उत्पत्ति-सम्बन्धी प्रथम गमक में स्थिति आदि का निर्देश मूल पाठ में कर दिया है। (2) प्रौघिक मनुष्य की जघन्य स्थिति वाले नरयिकों में उत्पत्तिसम्बन्धी द्वितीय गमक में नरयिक की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति एक सागरोपम होती है। काल की अपेक्षा से संवेध-जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार पूर्वकोटि अधिक चार सागरोपम होता है / (3) औधिक मनुष्य की उत्कृष्ट स्थिति वाले नैरयिकों में उत्पत्ति सम्बन्धी तृतीय गमक में भी इसी प्रकार जानना चाहिए, किन्तु इसका कालत: संवेध जघन्य तीन सागरोपम और उत्कृष्ट बारह सागरोपम होता है। चार-पांच-छह गमक में विशेष कथन--(४) जघन्य स्थिति वाले मनुष्य की औधिक नरक में उत्पत्तिसम्बन्धी चतुर्थ गमक में काल की अपेक्षा संवेध वर्षपथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार वर्षपृथक्त्व अधिक बारह सागरोपम होता है, (5) जघन्य स्थिति वाले मनुष्य की जघन्य स्थिति वाले न रयिकों में उत्पत्ति सम्बन्धी पंचम गमक में कायसंवैध काल की अपेक्षा से जघन्य वर्षपृथक्त्व अधिक एक सागरोपम और उत्कृष्ट चार वर्षपृथक्त्व अधिक चार सागरोपम होता है / इसी प्रकार (6) छठा गमक भी उपयोग-पूर्वक जानना चाहिए। सप्तम-अष्टम-नवम गमक में विशेष कथन-(७) उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य की प्राधिक नारकों में उत्पत्ति सम्बन्धी सप्तम गमक, (8) उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य की जघन्य स्थिति वाले नारकों में उत्पत्ति सम्बन्धी अष्टम गमक एवं (8) उत्कृष्ट स्थिति वाले मनुष्य की उत्कृष्ट स्थिति वाले नारकों में उत्पत्ति सम्बन्धी नवम गमक में शरीर की अवगाहना जघन्य और उत्कृष्ट पांच सौ धनुष की है। इसी प्रकार दूसरे नानात्व भी समझ लेने चाहिए। तिर्यञ्च की स्थिति जघन्य अन्तमुंहूर्त्त की कही गई थी, लेकिन मनुष्यगमकों में मनुष्य स्थिति कहनी चाहिए। किन्तु शर्करा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy