SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2223
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीसवां शतक : उद्देशक 5] [25 अनेकदेश रूक्ष, यह दूसरा भंग है / तथा सर्वशीत, अनेकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष, यह तीसरा भंग है / इस प्रकार तीन भंग होते हैं। इसी प्रकार सर्वउष्ण, सर्वस्निग्ध और सर्वरूक्ष के साथ भी तीन-तीन भंग जानने चाहिए / त्रिप्रदेशी स्कन्ध के चार स्पर्श के सर्व-अंश एकवचन में हों, तब प्रथम भंग बनता है। जैसे—एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष / इनमें से अन्तिम रूक्ष पद को अनेकवचन में रखने पर दूसरा भंग बनता है, अर्थात्--दो परमाणुरूप एकदेश शीत और परमाणुरूप एकदेश उष्ण, फिर दो शीतपरमाणुओं में एक परमाणु स्निग्ध और दूसरा शीत, परमाणुओं में से एक परमाणु तथा उष्ण परमाणुरूप एकदेश, ये दो अंश रूक्ष / जब तीसरे 'स्निग्ध' पद को अनेकवचन में रखा जाय, तब तीसरा भंग बनता है। यथा-एक परमाणुरूप देश शीत, दो परमाणुरूप दो उष्ण, और जो शीत है, वह परमाणु और दो उष्ण परमाणुओं में से एक परमाणु, ये दोनों स्निग्ध तथा जो एक उष्ण है, वह रूक्ष होता है। दूसरे 'उष्ण' पद में अनेकवचन रखने पर चौथा भंग बनता है / यथा-स्निग्ध दो परमाणुरूप एकदेश शीत और एक परमाणुरूप दूसरा अंश रूक्ष, स्निग्ध दो परमाणों में से एक परमाणरूप अश तथा रूक्ष अंश, ये दोनों उष्ण होते है। पांचवाँ भंग इस प्रकार है-एक अंश शीत और स्निग्ध तथा दूसरे दो अंश उष्ण और रूक्ष / छठा भंग इस प्रकार है---एक अंश शीत और रूक्ष तथा दूसरे दो अंश-उष्ण और स्निग्ध / सातवाँ भंग इस प्रकार है-स्निग्धरूप दो परमाणुओं में से एक और दूसरा एक, इस प्रकार दो अंश शीत और शेष एक अंश उष्ण तथा एक अंश स्निग्ध और रूक्ष होता है। पाठवाँ भंग यों है-दो अंश शीत और रूक्ष तथा एक अंश उष्ण और स्निग्ध / नौवाँ भंग इस प्रकार है--भिन्न देशवर्ती दो परमाणु शीत और स्निग्ध, तथा एक अंश उष्ण और रूक्ष होता है। इस प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध के स्पर्श-सम्बन्धी पच्चीस भंग होते हैं / इस प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध में वर्ण के 45, गन्ध के 5, रस के 45 और स्पर्श के 25, ये सब मिल कर 120 भंग होते हैं। चतुष्प्रदेशी स्कन्ध में वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श की प्ररूपणा 4. चउपएसिए णं भंते ! खंधे कतिवणे ? जहा प्रद्वारसमसए (स०८ उ०६ सु० 6) जाव सिय चउफासे पन्नत्ते / जति एगवण्णे--- सिय कालए य जाव सुक्किलए 5 / जति दुवष्णे-सिय कालए य, नीलए य 1; सिय कालए य, नीलगाय 2; सिय कालगा य, नीलए य 3; सिय कालगा य, नीलगा य 4; सिय कालए य, लोहियए य, एत्थ वि चत्तारि भंगा 4; सिय कालए य, हालिहए य 4; सिय कालए य, सुक्किलए य 4; सिय नीलए य, लोहियए य 4; सिय नीलए य, हालिद्दए य 4; सिय नीलए य, सुक्किलए य 4; सिय लोहियए य, हालिद्दए य 4; सिय लोहियए य, सुविकलए य 4; सिय हालिद्दए य, 3. (क) भगवती. चतुर्थ खण्ड (गु. अनुवाद) (पं. भगवानदासजी) पृ. 101 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) (पं. घेवरचन्दजी) भा. 1, पृ. 2852-53 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy