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________________ एकपञ्चाशत्स्थानक समवाय] [115 पञ्चाशत्स्थानक-समवाय 277- मुणिसुव्वयस्स गं अरहयो पंचासं अज्जियासाहस्सीयो होत्था। अणंते णं अरहा पन्नासं धणूइं उड्ड उच्च तेणं होत्था / पुरिसुत्तमे णं वासुदेवे पन्नासं धणूई उड्ड उच्चत्तेणं होत्था / मुनिसुव्रत अर्हत् के संघ में पचास हजार प्रायिकाएं थीं। अनन्तनाथ अर्हत् पचास धनुष ऊंचे थे। पुरुषोत्तम वासुदेव पचास धनुष ऊंचे थे। २७८-सवे वि णं दोहवेयड्डा मूले पन्नासं पन्नासं जोयणाणि विक्खंभेणं पण्णत्ता। सभी दीर्घ वैताढय पर्वत मूल में पचास योजन विस्तार वाले कहे गये हैं। २७९-लंतए कप्पे पन्नासं विमाणावाससहस्सा पण्णत्ता। सव्वानो णं तिमिस्सगुहा-खंडगप्पवायगुहारो पन्नासं पन्नासं जोयणाई आयामेणं पण्णत्ताओ। सव्वे वि णं कंचणगपव्वया सिहरतले पन्नासं पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। __ लान्तक कल्प में पचास हजार विमानावास कहे गये हैं। सभी तिमिस्र गुफाएं और खण्डप्रपात गुफाएं पचास-पचास योजन लम्बी कही गई हैं / सभी कांचन पर्वत शिखरतल पर पचास-पचास योजन विस्तार वाले कहे गये हैं / ॥पञ्चाशत्स्थानक समवाय समाप्त। एकपञ्चाशत्स्थानक-समवाय २८०-नवण्हं बंभचेराणं एकावन्न उद्देसणकाला पण्णत्ता। नवों ब्रह्मचर्यों के इक्यावन उद्देशन काल कहे गये हैं / विवेचन---प्राचाराङ्ग के प्रथम श्रुतस्कन्ध के शस्त्रपरिज्ञा आदि अध्ययन ब्रह्मचर्य के नाम से प्रख्यात हैं, उनके अध्ययन उनचास हैं, अतः उनके उद्देशनकाल भी उनचास ही कहे गये हैं। २८१-चमरस्स णं असुरिदस्स असुररन्नो सभा सुधम्मा एकावन्नखंभसयसंनिविट्ठा पण्णता / एवं चेव बलिस्स वि। असुरेन्द्र असुरराज चमर को सुधर्मा सभा इक्यावन सौ (5100) खम्भों से रचित है। इसी प्रकार बलि की सभा भी जानना चाहिए / २८२--सुप्पभे णं बलदेवे एकावन्न वाससयसहस्साई परमाउं पालइत्ता सिद्ध बुद्धे जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। सुप्रभ बलदेव इक्यावन हजार वर्ष की परमायु का पालन कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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