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________________ पञ्चचत्वारिंशत्स्थानक समवाय] [111 पहिली, चौथी और पाँचवी पृथिवी में तेयालीस (30+10+3= 43) लाख नारकावास कहे गये हैं / जम्बूद्वीप नामक इस द्वीप के पूर्वी जगती के चरमान्त से गोस्तुभ प्रावास पर्वत का पश्चिमी चरमान्त का विना किसी बाधा या व्यवधान के तेयालीस हजार योजन अन्तर कहा गया है। इसी प्रकार चारों ही दिशाओं में जानना चाहिए। विशेषता यह है कि दक्षिण में दकभास, पश्चिम दिशा म शख आवास पर्वत है और उत्तर दिशा में दकसीम आवास पर्वत है। २५७–महालियाए णं विमाणपविभत्तीए तइए वग्गे तेयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता / महालिका विमान प्रविभक्ति के तीसरे वर्ग में तेयालीस उद्देशन काल कहे गये हैं। ॥त्रिचत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त // चतुश्चत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २५८-चोयालीसं अज्झयणा इसिभासिया दियलोगचुया भासिया पण्णता। चवालीस ऋषिभासित अध्ययन कहे गये हैं, जिन्हें देवलोक से च्युत हुए ऋषियों ने कहा है / 259 -विमलस्स णं अरहओ णं चउआलीसं पुरिसजुगाई अणुपिट्टि सिद्धाई जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई। विमल अर्हत् के बाद चवालीस पुरुषयुग (पीढी) अनुक्रम से एक के पीछे एक सिद्ध, बुद्ध, कर्मों से मुक्त, परिनिर्वाण को प्राप्त और सर्व दुःखों से रहित हुए / २६०–धरणस्स णं नागिदस्स नागरण्णो चोयालीसं भवणावाससयहस्सा पण्णत्ता / नागेन्द्र, नागराज, धरण के चवालीस लाख भवनावास कहे गये हैं। 261- -महालियाए णं विमाणपविभत्तीए चउत्थे वग्गे चोयालीसं उद्देसणकाला पण्णत्ता / महालिका विमानप्रविभक्ति के चतुर्थ वर्ग में चवालीस उद्देशन काल कहे गये हैं। // चतुश्चत्वारिंशत्स्थानक समवाय समाप्त / / पञ्चचत्वारिंशत्स्थानक-समवाय २६२--समयक्खेत्ते णं पणयालीसं जोयणसयसहस्साई आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते / सोमंतए णं नरए पणयालीसं जोयणसयसहस्साई पायामविक्खंभेणं पण्णत्ते / एवं उडुविमाणे वि। ईसिपम्भारा णं पुढवी एवं चेव / समय क्षेत्र (अढाई द्वीप) पैंतालीस लाख योजन लम्बा-चौड़ा कहा गया है। इसी प्रकार ऋतु (उडु) (सौधर्म-ईशान देव लोक में प्रथम पाथड़े में चार विमानावलिकाओं के मध्यभाग में रहा हुआ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003472
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Hiralal Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages377
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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