SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 754
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 686 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ___ जीवों ने नौ स्थानों से निर्वतित पुद्गलों का पापकर्मरूप से अतीतकाल में संचय किया है, वर्तमान में कर रहे हैं और भविष्य में करेंगे / जैसे 1. पृथ्वीकायिक निर्वतित पुद्गलों का, 2. अप्कायिक निर्वतित पुद्गलों का, 3. तेजस्कायिक निर्वतित पुद्गलों का, 4. वायुकायिकनिर्वतित पुद्गलों का, 5. वनस्पतिकायिकनिर्वतित पुद्गलों का, 6. द्वीन्द्रियनितित पुद्गलों का, 7. श्रीन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का, 8. चतुरिन्द्रियनिर्वर्तित पुद्गलों का, 6. पंचेन्द्रियनिर्वतित पुद्गलों का। इसी प्रकार उनका उपचय, बन्ध, उदीरण, वेदन और निर्जरण किया है, करते हैं, और करेंगे। पुद्गल-सूत्र ७३–णवपएसिया खंधा अणंता पण्णत्ता जाव णवगुणलुक्खा पोग्गला अणंता पण्णत्ता। नौ प्रदेशी पुद्गल स्कन्ध अनन्त हैं। आकाश के नौ प्रदेशों में अवगाढ़ पुद्गल अनन्त हैं / नौ समय की स्थिति वाले पुद्गल अनन्त हैं। नौ गुण काले पुद्गल अनन्त हैं / इसी प्रकार शेष वर्ण तथा गन्ध, रस और स्पर्शों के नौ गुण वाले पुद्गल अनन्त जानना चाहिए (73) / / / नवम स्थान समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy