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________________ 536 ] [ स्थानाङ्गसूत्र __ अहवा–छविहा सव्वजीवा पण्णता, तं जहा-एगिदिया, (बेइंदिया, तेइंदिया, चउरिदिया,) पंचिदिया, अणिदिया। अहवा–छविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-पोरालियसरीरी, वेउब्वियसरीरी, पाहारगसरीरी, लेप्रगसरीरो, कम्मगसरीरी, असरीरी। सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. आभिनिबोधिक ज्ञानी, 2. श्रु तज्ञानी, 3. अवधिज्ञानी, 4. मनःपर्यवज्ञानी 5. केवलज्ञानी और 6. अज्ञानी (मिथ्याज्ञानी)। अथवा-सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं। जैसे-- 1. एकेन्द्रिय, 2. द्वीन्द्रिय, 3. त्रीन्द्रिय, 4. चतुरिन्द्रिय, 5. पंचेन्द्रिय, 6. अनिन्द्रिय (सिद्ध)। अथवा सर्व जीव छह प्रकार के कहे गये हैं। जैसे 1. औदारिकशरीरी, 2. वैक्रियशरीरी, 3. आहारकशरीरी, 4. तेजसशरीरी, 5. कार्मणशरीरी और 6. अशरीरी (मुक्तात्मा) (11) / तृणवनस्पति-सूत्र १२-छविहा तणवणस्सतिकाइया पण्णत्ता, तं जहा-अग्गबीया, मूलबीया, पोरबीया, खंघबीया, बीयरुहा, संमुच्छिमा। तृण-वनस्पतिकायिक जीव छह प्रकार के कहे गये हैं / जैसे 1. अग्रबीज, 2. मूलबीज, 3. पर्वबीज, 4. स्कन्धबीज, 5. बीजरुह और 6. सम्मूच्छिम (12) / नो-सुलभ-सूत्र १३-छट्ठाणाई सधजीवाणं णो सुलभाइ भवंति, तं जहा-माणुस्सए भवे। पारिए खेत्ते जम्मं / सुकुले पच्चायाती। केवलोपग्णत्तस्स धम्मस्स सवणता / सुतस्स वा सद्दहणता / सद्दहितस्स वा पत्तितस्स वा रोइतस्स वा सम्म काएणं फासणता / छह स्थान सर्व जीवों के लिए सुलभ नहीं हैं। जैसे 1. मनुष्य भव, 2. आर्य क्षेत्र में जन्म, 3. सुकुल में प्रागमन, 4. केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण, 5. सुने हुए धर्म का श्रद्धान और 6. श्रद्धान किये, प्रतीति किये और रुचि किये गये धर्म का काय से सम्यक् स्पर्शन (आचरण) (13) / इन्द्रियार्थ-सूत्र १४--छ इंदियत्था पण्णता, तं जहा–सोइंदियत्थे, (चक्खिदियत्थे, घाणिदियत्थे, जिभिदियत्थे,) फासिदियत्थे, णोइंदियत्थे। इन्द्रियों के छह अर्थ (विषय) कहे गये हैं / जैसे - 1. श्रोत्रेन्द्रिय का अर्थ-शब्द, 3. चक्षुरिन्द्रिय का अर्थ-रूप, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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