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________________ 76 ] [ स्थानाङ्गसूत्र ३३७-दो पउमहहा, दो पउमद्दहवासिणीनो सिरीनो देवीओ, दो महापउमहहा, दो महाप उमद्दहवासिणीयो हिरीयो देवीओ, एवं जाव दो पुंडरीयद्दहा, दो पोंडरीयद्दहवासिणीओ लच्छोश्रो देवोनो। धातकीखण्ड द्वीप में दो पद्मद्रह, दो पद्मद्रहवासिनी श्रीदेवी, दो महापद्मद्रह, दो महापद्मद्रहवासिनी ह्रीदेवी, इसी प्रकार यावत् (दो तिगिछिद्रह, दो तिगिछिद्रहवासिनी धृतिदेवी, दो केशरीद्रह, दो केशरीद्रहवासिनी कीत्तिदेवी, दो महापौण्डरीकद्रह, दो महापौण्डरीकद्रहवासिनी बुद्धिदेवी) दो पौण्डरीकद्रह, दो पौण्डरीक द्रहवासिनी लक्ष्मीदेवी कही गई हैं। ३३८---दो गंगप्पवायदहा जाव दो रत्तावतोपवातदहा / धातकीखण्ड द्वीप में दो गंगाप्रपातद्रह, यावत् (दो सिन्धुप्रपात द्रह, दो रोहिताप्रपातद्रह, दो रोहितांशाप्रपातद्रह, दो हरितप्रपातद्रह, दो हरिकान्ताप्रपातद्रह, दो सीताप्रपातद्रह, दो सीतोदाप्रपातद्रह, दो नरकान्ताप्रपातद्रह, दो नारीकान्ताप्रपातद्रह, दो सुवर्णकलाप्रपातद्रह, दो रूप्यकलाप्रपातद्रह) दो रक्ताप्रपातद्रह) दो रक्तवतीप्रपातद्रह कहे गये हैं। ३३६-दो रोहियाओ जाय दो रुप्पकलामो, दो गाहवतीयो, दो दहवतीनो, दो पंकवतीनो, दो तत्तजलाश्रो, दो मत्तजलामो, दो उम्मत्तजलाओ, दो खीरोयानो, दो सीहसोताओ, दो अंतोवाहिणीओ, दो उम्मिमालिणीप्रो. दो फेणमालिणीग्रो, गंभीरमालिणीयो। धातकीखण्ड द्वीप में दो रोहिता यावत् (दो हरिकान्ता, दो हरित्, दो सीतोदा, दो सीता, दो नारीकान्ता, दो नरकान्ता) दो रूप्यकूला, दो ग्राहवती, दो द्रहवती, दो पंकवती, दो तप्तजला, दो मत्तजला, दो उन्मत्तजला, दो क्षीरोदा, दो सिंहस्रोता, दो अन्तोमालिनी, दो उमिमालिनी, दो फेनमालिनी और दो गम्भीरमालिनी नदियाँ कही गई हैं / विवेचन- यद्यपि धातकोखण्ड द्वीप के दो भरत क्षेत्रों में दो गंगा और दो सिन्धु नदियां भी हैं, तथा वहीं के दो ऐरवत क्षेत्रों में दो रक्ता और दो रक्तोदा नदियाँ भी हैं, किन्तु यहाँ पर सूत्र में उनका निर्देश नहीं किया गया है, इसका कारण टीकाकार ने यह बताया है कि जम्बूद्वीप के प्रकरण में कहे गये 'महाहिमवंताओं वासहरपव्वयाओ' इत्यादि सूत्र 260 का आश्रय करने से यहां गंगा-सिन्धु आदि नदियों का उल्लेख नहीं किया गया है। ३४०-दो कच्छा, दो सुकच्छा, दो महाकच्छा, दो कच्छावती, दो पावत्ता, दो मंगलवत्ता, दो पुक्खला, दो पुक्खलावई, दो वच्छा, दो सुवच्छा, दो महावच्छा, दो वच्छगावती, दो रम्मा, दो रम्मगा, दो रमणिज्जा, दो मंगलावती, दो पम्हा, दो सुपम्हा, दो महपम्हा, दो पम्हगावती, दो संखा, दो लिणा दो कुमुया, दो सलिलावती, दो वप्पा, दो सुवप्पा, दो महावप्पा, दो वष्यगावती दो वग्गू, दो सुवगू, दो गंधिला, दो गंधिलावती। धातकीषण्ड द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध-सम्बन्धी विदेहों में दो कच्छ, दो सुकच्छ, दो महाकच्छ, दो कच्छकावती, दो पावर्त, दो मंगलावर्त, दो पुष्कल, दो पुष्कलावती, दो वत्स, दो सुवत्स, दो महावत्स, दो वत्सकावती, दो रम्य, दो रम्यक, दो रमणीय, दो मंगलावती, दो पक्ष्म, दो सुपक्ष्म, दो महापक्षम, दो पक्ष्मकावती, दो शंख, दो नलिन, दो कुमुद, दो सलिलावती, दो वप्र, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003471
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1981
Total Pages827
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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