SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 853
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 400 आचारांग सूत्र-द्वितीय श्रतस्कन्ध प्राणातिपात आदि शब्दों की व्याख्या-हिंसा से स्थूल दृष्टिवाले लोग केवल हनन अथवा करना अर्थ ही समझते हैं, इसीलिए तो शास्त्रकार ने यहाँ 'प्राणातिपात' शब्द मूलपाठ में रखा है / प्राणातिपात का अर्थ है प्राणों का अतिपात--नाश करना। प्राण का अर्थ (यहाँ केवल श्वासोच्छ्वास या प्राण-अपानादि पंचप्राण नहीं है, अपितु 5 इन्द्रिय, 3 मन-वचन-कायाबल, श्वासोच्छ्वास और आयुबल, यों दस प्राणों में से किसी भी एक या अधिक प्राणों का नाश करना प्राणातिपात हो जाता है। वर्तमान लोकभाषा में इसे हिंसा कहते हैं। स्थूलदष्टि वाले अन्यधर्मीय लोग स्थूल आंखों से दिखाई देने वाले (अस) चलते-फिरते जीवों को ही जीवमानते हैं, एकेन्द्रिय जीवों को नहीं, इसलिए यहाँ मुख्य 4 प्रकार के जीवों-सूक्ष्म, बादर, स्थावर और अस का उल्लेख किया है / पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पतिकाय के एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर कहते हैं और द्वीन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक के जीवों को अस कहते हैं / सूक्ष्म और बादर-ये दोनों विशेषण एकेन्द्रिय जीवों के हैं। जावज्जीवाए आजीवन कृत कारित और अनुमोदन-ये तीन करण और मन-वचन और काया का व्यापार ये तीन योग कहलाते हैं।' सव्वंपाणातिपातं = सर्वथा सभी प्रकार के प्राणातिपात का त्यागअहिंसा महानत है / प्रथम महाव्रत और उसकी पांच भावना 778. तस्सिमाओ पंच भावणाओ भवंति' [1] तत्थिमा पढमा भावणा-रियासमिते से णिग्गंथे, णो अणरियासमिते ति / केवली बूया-इरियाअसमिते से णिग्गंथे पाणाई भूयाई जीवाई सत्ताई अभिहणेज्ज वा वत्तेज्ज वा परियावेज्ज वा लेसेज्ज वा उद्दवेज्ज वा / इरियासमिते से णिग्गंथे, णो इरियाअसमिते त्ति पढमा भावणा। 1. (क) दशवै० अ० 4, सू० 11 जि. चू० पृ० 146, अग० चू० पृ० 80 हारि० टी० पृ० 144 (ख) दशवै० जि. चू० 146, हारि० टीका पृ० 144, 145, अग० चू० 80-81 2. (क) देखिये, अहिंसा महाव्रत का लक्षण- योगशास्त्र (हेमचन्द्राचार्य) प्रकाश 1120 (ख) प्रमत्तयोगात्प्राण व्यपरोपणं हिसा-तत्त्वार्थ सूत्र अ० 713 सू० (ग) जातिदेशकालसमयाऽनवच्छिन्ना: सार्वभौमा महाबतम्- योग-दर्शन, पाद २/सू० 311 महाबत जाति देश काल और समय (कुलावार) के बंधन से रहित सार्वभौम मर्वविषयक होते हैं। 3. 'भवंति' के आगे पाठ हे--'भवंति, तं जहा' 4. महाव्रत की पच्चीस भावनाओं के सम्बन्ध में चर्णिकार सम्मन पाठ प्रस्तुन पाठ से भिन्न है। तथा इस प्रकार का पाठ आवश्यक चूणि प्रतिक्रमणाध्ययन 10 143-147 में भी मिलता है। देखें आचाल मू० पा० टिप्पण पृ० 275-80-81 5, 'रियासमिते' के बदले पाठान्तर है-'इरियासमिए' 'इरियासमिते' 6. 'इरिया असमिते' के बदले पाठान्तर हैं-.-'अइरियासमिते', 'अणहरियासमिते।' 7. 'इसके बदले 'इरियाअसमिते' पाठान्तर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy