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________________ 224 आचारांग सूत्र- द्वितीय श्रुतस्कन्ध वा, धेणू ति वा, रसवती ति वा, महव्वए' ति वा, संवहणे ति वा / एयप्पगारं भासं असावज्ज जाव अभिकंख भासेज्जा। 543. से भिक्खू वा 2 तहेव गंतुमुज्जाणाई पन्बयाई वणाणि वा रुक्खा महल्ला पेहाए णो एवं वदेज्जा, तंजहा-पासा ग्रजोग्गा ति वा, तोरणजोग्गा ति वा, गिहजोग्गा ति वा, फलिहजोग्गा ति वा, अग्गलजोग्गा ति वा, णावाजोग्गा ति वा, उदगदोणिजोग्गा ति वा, पीढचंगबेर-णंगल-कुलिय-जंतलट्ठी-णाभि-गंडी-आसणजोग्गा ति बा, सयण-जाण-उवस्सयजोग्गा ति वा / एतप्पगारं भासं [सावज्ज जाव णो भासेज्जा। 544. से भिक्खू वा 2 तहेव गंतुमुज्जाणाई पन्वताणि वणाणि य रुक्खा महल्ल पेहाए एवं वदेज्जा, तंजहा-जातिमंता ति वा, दीहवट्टा ति वा, महालया ति वा, पयातसाला ति वा, विडिमसाला ति वा, पासादिया ति वा 4 / एतप्पगारं भासं असावज्जं जाव अभिकख भासेज्जा। 545. से भिक्खू वा 2 बहुसंभूता वणफला पेहाए तहा वि ते णो एवं वदेज्जा, तंजहापक्काई वा, पायखज्जाई वा, वेलोतियाई वा, टालाई वा, वेहियाई वा / एतप्पगारं भासं सावज्जं जाव णो भासेज्जा। शीघ्रगामी जुआ आदि वहन करने वाले भी रथ-योग्य होते हैं, वे मदको प्राप्त नहीं हुए छोटे-छोटे वृषभ भी हो सकते हैं। वाहिमा हल चलान आदि सब कार्यों में समर्थ / ..-अग० चूणि पृ० 170-71 1. 'महन्वए' के बदले पाठान्तर है--- 'महल्लए', कहीं कहीं.. -'हस्सेति वा महल्लए ति या' हस्सेवा महल्लए वा महब्बए ति वा / 'हस्से' का अर्थ है-छाटा; महल्लए -- बड़ा। 'गंतुमुज्जाणाई" आदि पदों की व्याख्या दशवकालिक णि में.-'क्रीड़ानिमित्तं वावियों रुक्खसमुदायो उज्जाणं / उस्सितो सिलासमुदायो पम्वतो / अडवीसु सयं जातं रुक्खगहणं वर्ण / एताणि उज्जाणादीणि जातिच्छ्या पयोयणतो वा गंतूर्ण तत्थ य रुक्खे अज्जुणादयो महल्ले पहाए-पक्खिऊण..." --"क्रीड़ा या मनोरंजन के लिए लगाये हुए वृक्षों का समूह उद्यान है। ऊंचा शिला--समूह पर्वत है, जंगलों में स्वयं पैदा हुए वृक्षों से जो गहन हो, वह वन है / इन उद्यान आदि में सहजभाव से या किसी प्रयोजनवश जा कर, वहाँ अर्जुन आदि विशाल वृक्षों को देखकर....। 3. 'पासायजोग्गा' आदि क्रम में किसी-किसी प्रति में 'गिहजोग्गा पाठ नहीं है। और किसी प्रति में 'अगला-नावा-उदगदोणि-पीढ' आदि समस्त पद है, तथा आगे 'आसण-सयण-जाण-उवस्सयजोग्या ति' भी समस्त पद है। 4. दशवकालिक सूत्र अ०७ गा० 26, 27, 28, 30, 31 से तुलना कीजिए। 5. यासादीया ति बा के आगे 'x' का अंक दरिसणीया अभिरूवा पडिरूवा' पाठ का सचक है वेहियाइ का संस्कृत रूपान्तर 'धिकानी' करके वृत्तिकार अर्थ करते हैं---पेशीसम्पादनेन द्वधीभावकरणयोग्यानि :-- इसकी फांके बनाकर दो टुकड़े करने योग्य हैं / आम आदि का अचार डालने के लिए कच्चे आम आदि के टकड़े चीरकर उसमें मसाला भरा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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