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________________ 126 आचारांग सूत्र-द्वितीय मतका ज्ज वा, सिणाणेव वा कक्केण वा लोद्धण वा वण्णेण वा चण्णेण वा पउमेण वा आफंसेज वा पधंसेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उव्वदृज्ज वा, सीओवगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पहोएज्ज वा सिणावेज्ज वा सिचेन्ज वा दारुणा' वा दारुपरिणाम कट्ट अगणिकायं उज्जालेज्ज वा पम्जालेज्ज वा उज्जालेत्ता [पज्जालेता ?] कायं आतावेज्ज वा पयावेज्ज वा। अह भिक्खूणं पुव्योवविट्ठा एस पतिण्णा 4 जं तहप्पमारे सागारिए उबस्सए णो ठाणं बा 3 चेतेजा। 422. आयाणमेयं भिक्खुस्स सागारिए उवरसए संवसमाणरस / इह खलु गाहावती का जाव कम्मकरी वा अण्णमण्णं अक्कोसंति वा वहति वा रुंभंति वा उद्दति वा / अह भिक्खू गं उच्चावयं मणं णियच्छेज्जा-एते खलु अण्णमणं अक्कोसंतु वा, मा वा अक्कोसंतु, जाव मा वा उद्दवतु। अह भिक्खूणं पुव्योवविट्ठा 4 जं तहप्पगारे सागारिए उबस्सए णो ठाणं 3 चेतेज्जा। 423. आयाणमेयं भिक्खस्स गाहावतोहि सद्धि संवसमाणस्स / इह खलु गाहावती अप्पणो सअढाएअगणिकार्य उज्जालेज्ज वा पज्जालेन्ज वा विज्ञावेज्ज वा। अह भिण्डू 1. 'दारुणा वा दारुपरिणामं कट्ट' की व्याख्या चूणिकार के शब्दों में--'परियट्टेति बार" अहवा उत्तरा धरा संजोएत्ता अगणि पाडित्ता उज्जालेत्ता पज्जालेत्ता।..दारुण परिणामणं परियणं अभिणवजणणं वा / ' दारुणा लकड़ी से, वाहपरिणाम-लकड़ी का घर्षण-पर्यावर्तन करके अथवा ऊपर नीचे की लकड़ियों को जोड़कर आग सुलगाकर उज्ज्वलित-प्रज्ज्वलित करके। लकड़ियों का परिणामन परिवर्तन करना यानी बुझी हुई लकड़ियों की जगह नई लकड़ी जलाने के लिए रखना। 2. 'पतिण्णा' के बाद '4' का अंक सू० 357 के अनुसार 'एस हेतु एस कारणे एस उवएसे' का सूचक 3. उच्चावयं का अर्थ चूर्णिकार ने किया है-अलेगप्पगारं-अनेक प्रकार का। 4. 'सअट्ठाए' की व्याख्या वृत्तिकार के शब्दों में--'स्वार्थमग्निसमारम्भ क्रियमाणे अपने प्रयोजन के लिए अग्निसमारम्भ किये जाने पर। 'अगणिकायं उज्जालिज्जा' आदि पदों की व्याख्या चाणकार के शब्दों में--अगणिकायं उज्जालिज्जा ससणिद्ध एवं एत्थ उज्जालिज्जा / उज्जलते चोरा सावयं वा ण एहि त्ति / अहवा सुठ्ठ विज्झवितो, मा एयं पेच्छितु तेणगा एहि ति / एवं कस्सइ उज्जोओ पि तो, कस्सति अंधगारो।' अर्थात्--'अगणि कायं उज्जालिन्ना' इस पाठ का तात्पर्य यह है कि कोई श्रद्धालु गृहस्थ स्नेहवश अग्नि को इसलिए उज्ज्वलित करता है कि अग्नि के प्रज्वलित होने पर मोर या श्वापद (सिंह आदि हिल प्राणी) नहीं आएंगे। अथवा (आग को) अच्छी तरह बुझा दो, ताकि इसे (अन्धकार) देखकर चोर नहीं आएंगे, अत: किसी को प्रकाश प्रिय होता है, किसी को अन्धकार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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