SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 576
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ द्वितीय अध्यपन : प्रथम उद्देशक : सूत्र 416 123 स्वयं उसका उपयोग करता है, दूसरे लोगों को उपयोग करने के लिए देता है, तब वह मकान साधु के उद्देश्य से निर्मित-संस्कारित नहीं रहता, वह अन्यार्यकृत हो जाता है / साधु के लिए दशवकालिक सूत्र में पर-कृत मकान में रहने का विधान है।' मूलगुण-दोष' से दूषित मकान तो पुरुषान्तरकृत होने पर भी कल्पनीय नहीं, इसलिए अन्य विशेषण प्रयुक्त किए गए हैं- "नीहडे अत्तट्ठिए परिमृत आसेविते।" उपाधय-एवणा [चतुर्य विवेक] 416. से भिक्खू वा 2 से ज्जं पुण उवस्सयं जाणेज्जा, तंजहा-खंधसि बा मंचंसि वा मालसि वा पासायंसि वा हम्मियतलंसि वा अण्णतरंसि वा तहप्पगारंसि अंतलिक्खजायंसि णण्णस्य आगाढागाउँहि कारणेहि ठाणं वा 3 चेतेज्जा। से य आहच्च चेतिते सिया, गो तत्थ सोतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा हत्याणि वा पादाणि वा अच्छीणि वा दंताणि वा मुहं वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा णो तत्व ऊसट्ठ पफरेज्जा, तंजहा-उच्चारं वा पासवणं वा खेलं वा सिंघाणं वा वंतं वा पित्तं वा पूर्ति वा सोणियं वा अण्णतरं वा सरीरावयवं / केवली बूया-आयाणमेतं / से तत्थ असह्र पकरेमाणे पयलेज्ज वा पक्डेज वा, से तत्थ 1. (क) आचारांग मूल, वृत्ति पत्र 361 / (ख) अन्नदह्र पगडं लयणं, मएज्ज सयणासणं / उच्चारममिसंपन्न इत्पी-पस-विवज्निया -दशव० अ०८ गा० 51 2. आचासंग वृत्ति पत्रांक 361 में मूलगुण-दोष ये बताए गए हैं-- 'पट्ठी वंसो को धारणा उ चत्तारि मूलवेलोमो। देखे सूत्र 443 का विवेचन खंधसि आदि पदों का अर्थ निशीथ चूणि उ०४ में इस प्रकार है-'खंधो पागारो, पेटं वा, फलिहो अग्गला, अफूड्डो मंचो, सो य मंडखो। गिहोरि मालो भमिगादि / विज्ञहगवाखोषसोभिगो पासा दो। सम्बो परिडायालं हम्मतलं ।'–स्कन्ध-प्राकार या एक खम्भे पर टिकाया हुआ उपाश्रय, फलिहो=अर्गला, मंचो-बिना दीवार का स्थान, वही मंडप होता है। मालो-घर के ऊपर जो दूसरी आदि मंजिल हो, पासादो-अनेक कमरों से सुशोभित महल / हम्मतनं सबसे ऊपर की अटारी। 4. 'ठाणं या' के बाद '3' का अंक 'सेज्ज वा निसीहिवं वा' पाठ का सूचक है। 5. 'सीतोवधियण' आदि पदों का अर्थ देखिये निशीथ चणि उ०४ में-'सीतोदगं अतावितं वियर्ड ति व्यपगतजीवं / उसिणंति तावियं तं चेव बवगयजीवं / एक्कंसि उच्छोलणं, पुणो पुणो धोवणं पधोवणं / ' सीतोदगं गर्म नहीं किया हआ, वियर्ड-जीवरहित-प्रासुक जल / उसिणं गर्भ किया हआ, वह भी जीव रहित जल होता है। उच्छोल-एक बार धोना, पयोषबार-बार धोना / ऊसट्टे का अर्थ चूर्णिकार के शब्दों में 'उच्छिते उस्सट्र उच्चारादि / ' ऊपर से उच्चारादि का उत्सजन-त्याग करना उत्सष्ट है। इसके अनेक पाठान्तर हैं...बोसइडं, सड़ा, ऊसदं आदि। 6. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy