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________________ प्रथम अध्ययन : सप्तम उद्देशक : सूत्र 366-71 370. से भिक्खू वा 2 जाव' समाणे से ज्जं पुण पाणगजातं जाणेज्जा तंजहा-तिलोदर्ग' वा तुसोदगं वा जवोदगं वा आयामं वा सोवीरं वा सुद्धवियर्ड वा, अण्णतरं वा तहप्पगारं पाणगजातं पुवामेव आलोएज्जा आउसो त्ति वा भगिणि त्ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं पाणगजातं ? से सेवं वदंतं परो वदेज्जा-आउसंतो समणा! चेवेदं पाणगजातं पडिग्गहेण वा उस्सिचियाणं ओयत्तियाणं गिण्हाहि / तहप्पगारं पाणगजातं सयं वा गेण्हेज्जा, परो वा से वेज्जा, फासुयं लाभे संते पडिगाहेज्जा। __371. से भिक्खू वा जाव समाणे से ज्जं पुण पाणगं जाणेज्जा-अणंतरहिताए पुढवीए जाव संताणए उद्धटु उद्घ8 णिक्खित्ते सिया। अस्संजते भिक्खुपडियाए उदउल्लेण वा ससणिदेण वा सकसाएण वा मत्तेण वा सोतोदएण वा संभोएत्ता आहट्ट दलएज्जा। तहप्पगारं पाणगजायं अफासुर्य लाभे संते णो पडिगाहेज्जा। ___366. गृहस्थ के घर में पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी यदि पानी के इन प्रकारों को जाने, जैसे कि-आटे का हाथ लगा हुआ पानी, तिल धोया हुआ पानी, चावल धोया हुआ पानी, अथवा अन्य किसी वस्तु का इसी प्रकार का तत्काल धोया हुआ पानी हो, जिसका स्वाद चलित-(परिवर्तित) न हुआ हो, जिसका रस अतिक्रान्त न हुआ (बदला न) हो, जिसके वर्ण आदि का परिणमन न हुआ हो, जो शस्त्र-परिणत न हुआ हो, ऐसे पानी को अप्रासुक और अनेषणीय जानकर मिलने पर भी साधु-साध्वी ग्रहण न करे। इसके विपरीत यदि वह यह जाने कि यह बहुत देर का चावल आदि का धोया हुआ धोवन है, इसका स्वाद बदल गया है, रस का भी अतिक्रमण हो गया है, वर्ण आदि भी परिणत हो गए हैं और शस्त्र-परिणत भी है तो उस पानक (जल) को प्रासुक और एषणीय जानकर प्राप्त होने पर साधु-साध्वी ग्रहण करे / 370. गृहस्थ के यहां पानी के लिए प्रविष्ट साधु या साध्वी अगर इस प्रकार का पानी जाने, जैसे कि तिलों का (धोया हुआ) उदक; तुषोदक, यवोदक, उबले हुए चावलों का ओसामण (मांड), कांजी का बर्तन धोया हुआ जल, प्रासुक उष्ण जल अथवा इसी प्रकार का अन्य-द्राक्ष को धोया हुआ पानी (धोवन) इत्यादि जल-प्रकार पहले देखकर ही साधु गृहस्थ से कहे"आयुष्मान् गृहस्थ (भाई) या आयुष्मती बहन ! क्या मुझे इन जलों (धोवन पानी) में से किसी जल (पानक) को दोगे?" साधु के इस प्रकार कहने पर वह गृहस्थ यदि कहे कि "आयुष्मन 1. 'जाव' के आगे का 'समाणे' तक का पाठ सू० 324 के अनुसार समझें / 2. तुलना कीजिए-दशवकालिक अ०५, उ०१, गा० 88, 12 / 3. इसके स्थान पर पाठान्तर इस प्रकार है-'उसिंचियाणं अवत्तियाणं' / अर्थ समान है। 4. इसके स्थान पर 'ओहद्द निक्खित्ते', 'उहट्ट 2 निक्खिसे पाठान्तर है। अर्थ समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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