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________________ 61 प्रथम अध्ययन : छठा उद्देशक : सूत्र 360 चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स दगछड्डणमेत्तए चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स चंदणिउपए चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स असिणाणस्स' वा वच्चस्स वा संलोए सपडि दुवारे चिट्ठज्जा, णो गाहावतिकुलस्स आलोयं वा थिग्गलं वा संधि वा दगभवणं वा बाहाओ पगिज्झिय 2 अंगुलियाए वा उद्दिसिय 2 ओणमिय 2 उपणमिय 2 णिज्झाएज्जा / णो गाहावति अंगुलियाए उद्दिसिय 2 जाएज्जा, णो गाहावति अंगुलियाए चालिय 2 जाएज्जा, गो गाहावति अंगुलियाए तज्जिय 2 जाएज्जा, गो गाहावति अंगुलियाए उक्खुलंपिय 2 जाएज्जा, णो गाहाति बंदिय 2 जाएज्जा, णो व णं फरसं वदेज्जा। सचित्त संसृष्ट-असंसृष्ट आहार-एषणा ___ अह तत्थ कंचि भुंजमाणं पेहाए तंजहा गाहाति वा जाव कम्मकरि वा से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ति वा भइणी ति वा दाहिसि मे एत्तो अण्णतरं भोयणजातं ? | से सेवं वदंतस्स परो हत्थं वा मत्तं वा दटिव वा भायणं वा सोतोदगवियडेण वा उसिगोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा। से पुवामेव आलोएज्जा-आउसो ति वा भगिणी ति वा मा एतं तुम हत्थं वा मत्तं वा दवि वा भायणं वा सीतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेहि वा पधोवाहि वा, अभिकखसि मे दातुं एमेव दलयाहि / से सेवं वदंतस्स परो हत्थं वा 4 सोतोदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेत्ता पधोइत्ता आहट्ट दलएज्जा / तहप्पगारेणं पुरोकम्मकतेणं हत्थेण वा 41 असणं वा 46 अफासुयं अणेसणिज्ज जाव णो पडिगाहेज्जा। अह पुणेव जाणेज्जा णो पुरेकम्मकतेणं, उदउल्लेणं / तहप्पगारेणं उदउल्लेण हत्थेण वा 4 असणं वा 4 अफासुयं जाव णो पडिगाहेज्जा। अह पुणेवं जाणेज्जाणो उदउल्लेण, ससणिद्धण / सेसं तं चेव / 1. सिणाणस्स बच्चस्स आदि शब्दों का अर्थ यों है—सिणाणं हि व्हायंति यानी जहाँ स्नान करते हैं-स्नान-घर / इसी प्रकार 'वच्च' शब्द भी शौचालय को सूचित करता है। 2. अवलंबिय उहिसिय आदि पदों के आगे '2' का अंक सर्वत्र उसी पद की पुनरावृत्ति का सूचक है। 3. पाठान्तर है---'पहोएहि', अर्थ समान है। 4. 'हत्वं दा' में 4 का अंक 'अमत्तं वा दधि वा भायणं वा' इन पदों का सूचक है। 5. हत्थेण वा के आगे 4 का अंक 'अमत्रोण वा, दविएण वा भायणेण वा इन तीन पदों का सूचक 6. 'असणं वा' के आगे '4' का अंक शेष तीनों आहारों का सूचक है। . 7. 'अफासुयं के आगे 'जाव' शब्द 'असणिज्ज लाभे संते' इन पदों का सूचक है। 7. इसके स्थान पर पाठान्तर मिलते हैं 'पुण एव, पुण एवं / ' अर्थ समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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