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________________ स्थविर कौन ? इस प्रश्न के उत्तर में दो मत हैं-आचारांगचूणि एवं निशीथचूर्णिकार का मत है-थेरा गणधरा / स्थविर का अर्थ है गणधर ! निशोथर्णिकार ने निशीथ सूत्र, जो कि आचारचूला का ही एक अंश है, उमे गणधरों का 'आत्मागम' माना है, जिससे स्पष्ट है कि वह 'गणधर कृत' मानने के ही पक्षधर है।' वृत्तिकार शीलांकाचार्य ने---स्थविर की परिभाषा-चतुर्दशपूर्वधर की है।' आवश्यक चूर्णिकार तथा आचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार आचारांग की तृतीय व चतुर्थ चूलिका यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्र से लेकर आई। प्राचीन तथ्यों के अनुशीलन से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि आचारचूला प्रथम श्रतस्कंध का परिशिष्ट रूप विस्तार है / भले ही वह गणधरकृत हो, या स्थविरकृत, किंतु उसकी प्रामाणिकता असंदिग्ध है ! प्रथम श्रुतस्कंध के समान हो इसकी प्रामाणिकता सर्वत्र स्वीकार की गई है। विषय वस्तु : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, आचारांग का संपूर्ण विषय आचारधर्म से सम्बन्धित है। आचार में भी सिर्फ श्रमणाचार। प्रथम श्रुतस्कंध सूत्ररूप है, उसकी शैली अध्यात्मपरक है अतः मूलरूप में उसमें अहिंसा, समता, अनासक्ति, कषाय-विजय, धुत श्रमण-आचार आदि विषयों का छोटे छोटे वचन सूत्रों में सुन्दर व सारपूर्ण प्रवचन हुआ है। द्वितीय श्रुतस्कंध विवेचन विस्तार शैली में है। इसमें श्रमण की आहार-शुद्धि, स्थानगति-भाषा आदि के विवेक व आचारविधि की परिशुद्धि का विस्तार के साथ वर्णन है। आचार्यों का मत है कि प्रथम श्र तस्कंध में सत्ररूप निर्दिष्ट विषयों का विस्तार ही आचारचूला में हुआ है / आचार्यशीलांक आदि ने विस्तारपूर्वक सूत्रों का निर्देश भी किया है। 1. आचा• चूणि तथा निशोथचूणि भाग 1. पृ० 4 2. वृत्ति पत्रांक ३१६,--स्थविरैः श्र तवृद्ध श्चतुर्दशपूर्वविद्भिः नि' ढानि / 3. विस्तार के लिए देखिए प्रथम श्रतस्कंध की प्रस्तावना :---देवेन्द्र मुनि / 4. (क) नियुक्तिकार भद्र बाह ने मंक्षेप में नियहण स्थल के अध्ययन व उद्देशक का संकेत किया है। नियुक्ति गाथा 288 से 261 / किन्तु चूर्णिकार व वृत्तिकार ने. (वृत्तिपत्रांक 316-20) सूत्रों का भी निर्देश किया है। जैसे : (ख) सव्वामगंधपरिन्नाय... अदिस्समाणो कयविक्कएहि--- (अ० 2 उ० 5 सूत्र 88) भिक्खू परक्कमेज्ज वा चिट्ठज्ज वा... (अ० 8 उ० 2 सूत्र 204) आदि सूत्रों के विस्ताररूप में पिण्डैषणा के 11 उद्देशक तथा 2, 5, 6, 7 वां अध्ययन नियूढ़ हुआ है। (ग) से कत्थं पडिग्गह, कंबलं पायपुछणं... (अ० 2 उ० 5 सूत्र 86) इस आधार पर वस्त्रं षणा, पाषणा, अवग्रहप्रतिमा, शय्या अध्ययन आदि का विस्तार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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