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________________ दशा मुद्रित हो चुके है, तथा स्थानांग, ज्ञाताधर्मकथा आदि अनेक आगमों का संपादन कार्य भी संपूर्ण हो गया; वे प्रेस में मुद्रणाधीन हैं। कुछ सज्जनों का सुझाव था कि सर्वप्रथम दशवकालिक, नन्दीसूत्र आदि का प्रकाशन किया जाय किन्तु श्रद्धेय मुनि श्री मधुकरजी महाराज का विचार प्रथम अंग आचारांग से ही प्रारम्भ करने का था। क्योंकि आचारांग समस्त अंगों का सार है। इस सम्बन्ध में यह स्पष्टीकरण कर देना आवश्यक प्रतीत होता है कि प्रारम्भ में आचारांग आदि क्रम से ही आगमों को प्रकाशित करने का विचार किया गया था, किन्तु अनुभव से इसमें एक बड़ी अड़चन जान पड़ी। वह यह कि भगवती जैसे विशाल आगमों के सम्पादन-प्रकाशन में बहुत समय लगेगा और तब तक अन्य आगमों के प्रकाशन को रोक रखने से सब आगमों के प्रकाशन में अत्यधिक विलम्ब हो जाएगा। हम चाहते हैं कि यथासंभव शीघ्र यह शुभ कार्य सम्पन्न हो जाए तो अच्छा / अत: अब यह निर्णय रहा है कि आचारांग के पश्चात् जो-जो आगम तैयार होते जाएँ उन्हें ही प्रकाशित कर दिया जाए / अब शीन ही जिज्ञासु पाठकों की सेवा में अन्य आगम भी पहुँचने की आशा है। सर्वप्रमथ हम श्रमणसंघ के युवाचार्य, सर्वतोभद्र, श्री मधुकर मुनिजी महाराज के प्रति अतीव आभारी हैं, जिनकी शासन-प्रभावना की उत्कट भावना, आगमों के प्रति उद्दाम भक्ति, धर्मज्ञान के प्रचारप्रसार के प्रति तीव्र उत्कंठा और साहित्य के प्रति अप्रतिम अनुराग की बदौलत हमें भी वीतरागवाणी की किंचित् सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त हो सका। सेवा के इस सात्त्विक अनुष्ठान में अपने सहयोगियों के भी हम कृतज्ञ हैं / सागरबर-गंभीर श्रावक वर्य पद्मश्री सेठ मोहनमलजी सा. चोरडिया ने समिति की अध्यक्षता स्वीकार कर और एक बड़ी धनराशि प्रदान कर हमें उत्साहित किया / अर्थ-संग्रह में हमारे साथ श्री कंवरलालजी बेताला, श्री मूलचन्दजी सुराणा ने परिभ्रमण किया। जोधपुर श्रीसंघ ने अर्थसंग्रह में पूरा योगदान दिया। इन सब उत्साही सहयोगियों के प्रति हम हादिक आभार प्रकट करते हैं। श्रीरतनचन्दजी मोदी, कोषाध्यक्ष समिति तथा स्थानीय मन्त्री श्री चांदमलजी विनायकिया से समिति के कार्यों में सदा सहयोग प्राप्त होता रहता है। इस आगम का सम्पूर्ण प्रकाशन व्यय श्रीमान सायरमल जी चोरडिया एवं श्रीमान जेठमल जी चोरडिया ने उदारता पूर्वक प्रदान किया है, जो उनकी जिनवाणी एवं श्रद्धय युवाचार्य श्री के प्रति प्रगाढश्रद्धा का परिचायक है। समिति उनके सहयोग की सदा कृतज्ञ रहेगी। आप जैसे उदार सद्गृहस्थों के सहयोग से ही हम लागत से भी कम मूल्य पर आगम ग्रन्थों को प्रसारित करने का साहस कर पा रहे हैं।' आचारांग सूत्र के दोनों खण्ड लागत से भी कम कीमत पर प्रस्तुत किये गये हैं। समिति कार्यालय की व्यवस्था श्री सुजानमल जी सेठिया आत्मीयता की भावना से कर रहे हैं। इन तथा अन्य सहयोगियों का भी हार्दिक आभार मानना हमारा कर्तव्य है / पुखराज शीशोदिया (कार्यवाहक अध्यक्ष) जतनराज मेहता (महामंत्री) आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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