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________________ पंचम अध्ययन : षष्ठ उद्देशक : सूत्र 174-175 187 . 175. विणएत्त सोतं निक्खम्म एस महं अकम्मा जाणति, पासति, पडिलेहाए गावकंखति। 174. ऊपर (प्रासक्ति के) स्रोत हैं, नीचे स्रोत है, मध्य में स्रोत (विषयासक्ति के स्थान हैं, जो अपनी कर्म-परिणतियों द्वारा जनित) हैं। ये स्रोत कर्मों के प्रास्रवद्वार कहे गये हैं, जिनके द्वारा समस्त प्राणियों को आसक्ति पैदा होती है, ऐसा तुम देखो। (राग-द्वेष-कषाय-विषयावर्तरूप) भावावर्त का निरीक्षण करके प्रागमविद् (ज्ञानी) पुरुष उससे विरत हो जाए। 175. विषयासक्तियों के या आस्रवों के स्रोत को हटा कर निष्क्रमण (मोक्षमार्ग में परिव्रजन) करने वाला यह महान साधक अकर्म (घातिकमों से रहित या ध्यानस्थ) होकर लोक को प्रत्यक्ष जानता, देखता है। (इस सत्य का) अन्तनिरीक्षण करने वाला साधक इस लोक में (अपने दिव्य ज्ञान से) संसार-भ्रमण और उसके कारण की परिज्ञा करके उन (विषय-सुखों) की प्राकांक्षा नहीं करता। विवेचन -'उड़त सोता.'-- इत्यादि सूत्र में जो तीनों दिशाओं या लोकों में स्रोत बताए हैं, वे क्या हैं ? वृत्तिकार ने इस पर प्रकाश डाला है-"स्रोत हैं—कर्मों के प्रागमन (पासव) के द्वार; जो तीनों दिशाओं या लोकों में हैं / ऊर्ध्वस्रोत हैं---वैमानिक देवांगनारों या देवलोक के विषय-सुखों की प्रासक्ति / इसी प्रकार अधोदिशा में हैं--भवनपति देवों के विषय-सुखों में आसक्ति, तिर्यकलोक में व्यन्तर देव, मनुष्य, तिर्यंच सम्बन्धी विषय-सुखासक्ति। इन स्रोतों से साधक को सदा सावधान रहना चाहिए।" एक दृष्टि से इन स्रोतों को ही आसक्ति (संग) समझना चाहिए / मन की गहराई में उतरकर इन्हें देखते रहना चाहिए / इन स्रोतों को बन्द कर देने पर ही कर्मबन्धन बन्द होगा। कर्मबन्धन सर्वथा कट जाने पर ही अकर्मस्थिति आती है, जिसे शास्त्रकार ने कहा--"अकम्मा जाणति, पासति / " मुक्तात्म-स्वरूप 176. इह आगति गति परिणाय अच्चेति जातिमरणस्स बडुमगं वक्खातरते। सव्वे सरा नियति, तक्का जत्थ ण' विज्जति, 1. आचा० शीला० टीका पत्रांक 207 / 2. 'वडुमग्ग' का अर्थ चूर्णिकार करते हैं-बामग्गो पंयो बदुमग्गं ति पंथानम् / वटुमार्ग का अर्थ है वटमार्ग-रास्ता। 3. इसका अर्थ चूणिकार ने किया है-वक्खायरतो सुते अत्थे ' -सूत्र और अर्थ की पाख्या (जो की गई. है) में रत है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003469
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages938
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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