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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३०५ ग्रैवेयक और अनुत्तर देवों की स्थिति (८) हेट्ठिमहेट्ठिमगेवेजविमाणेसु णं भंते ! देवाणं केवइकालं ठिती प० ? गो० ! जह० बावीसं सागरोवमाइं उक्को० तेवीसं सागरोवमाइं । हेट्ठिममज्झिमगेवेजविमाणेसु णं जाव गो० ! जह० तेवीसं सागरोवमाइं उक्कोसेणं चउवीसं सागरोवमाइं । हेट्ठिमउवरिमगेवेज्ज० जाव जह० चउवीसं सागरोवमाइं उक्को० पणुवीसं सागरोवमाइं । मज्झिमहेट्ठिमगेवेजविमाणेसु णं जाव गोयमा ! जह० पणुवीसं सागरोवमाई उक्को० छव्वीसं सागरोवमाइं । . मज्झिममज्झिमगेवेज० जाव जह० छव्वीसं सागरोवमाइं उक्को० सत्तावीसं सागरोवमाइं । मज्झिमउवरिमगेवेजविमाणेसु णं जाव गोतमा ! जह० सत्तावीसं सागरोवमाई उक्को० अट्ठावीसं सागरोवमाई । उवरिमहेट्ठिमगेवेज० जाव जह० अट्ठावीसं सागरोवमाई उक्को० एक्कूणतीसं सागरोवमाइं । उवरिममज्झिमगेवेज० जाव जह० एक्कूणतीसं सागरोवमाइं उक्को० तीसं सागरोवमाइं । उवरिमउवरिमगेवेज० जाव जह० तीसं सागरोवमाइं उक्को० एक्कतीसं सागरोवमाइं । [३९१-८ प्र.] भगवन् ! अधस्तन-अधस्तन ग्रैवेयक विमान में देवों की स्थिति कितनी कही गई है ? [३९१-८ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति बाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति तेईस सागरोपम की है। [प्र.] भगवन् ! अधस्तनमध्यम ग्रैवेयक विमान के देवों की स्थिति कितनी कही है ? [उ.] गौतम! जघन्य स्थिति तेईस सागरोपम और उत्कृष्ट स्थिति चौबीस सागरोपम की है। अधस्तन-उपरिम ग्रैवेयक के देवों की जघन्य स्थिति चौबीस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति पच्चीस सागरोपम की है। तथा गौतम! मध्यम-अधस्तन ग्रैवेयक के देवों की जघन्य स्थिति पच्चीस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति छब्बीस सागरोपम की होती है। तथा ___ मध्यम-मध्यम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति छब्बीस सागरोपम की, उत्कृष्ट स्थिति सत्ताईस सागरोपम की है। तथा गौतम! मध्यम-उपरिम ग्रैवेयक विमानों में देवों की जघन्य स्थिति सत्ताईस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति अट्ठाईस सागरोपम की होती है। तथा— उपरिम-अधस्तन ग्रैवेयक विमानों के देवों की जघन्य स्थिति अट्ठाईस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति उनतीस सागरोपम की है। ___उपरिम-मध्यम ग्रैवेयक देवों की जघन्य स्थिति उनतीस सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति तीस सागरोपम की है। तथा उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक विमानों के देवों की जघन्य स्थिति तीस सागरोपम की और उत्कृष्ट सि.ते इकतीस सागरोपम की है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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