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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण ३०३ [३९१-२ उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति एक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति दो सागरोपम की है । [प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में (परिगृहीता) देवियों की स्थिति कितने काल की है ? [उ.] गौतम ! सौधर्मकल्प में (परिगृहीता) देवियों की जघन्य स्थिति एक पल्योपम की और उत्कृष्ट सात ल्योपम की है। [प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति पचास पल्योपम की होती है। ( ३ ) ईसाणे णं भंते ! कप्पे देवाणं केवतिकालं ठिती पन्नत्ता ? गो० ! जहन्नेणं सातिरेगं पलिओवमं उक्को० सातिरेगाई दो सागरोवमाई । ईसाणे णं भंते ! कप्पे देवीणं जाव गो० ! जह० सातिरेगं पलिओवमं उक्को० नव पलिओवमाई । ईसाणे णं भंते ! कप्पे अपरिग्गहियाणं देवीणं जाव गो० ! जहन्नेणं साइरेगं पलिओवमं उक्कोसेणं पणपण्णं पलिओवमाई । [३९१-३ प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [३९१-३ उ.] गौतम ! ईशानकल्प के देवों की जघन्य स्थिति साधिक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति साधिक दो सागरोपम की है। [प्र.] भगवन्! ईशानकल्प की (परिगृहीता) देवियों की स्थिति कितने काल की कही है ? [3] गौतम ! जघन्य स्थिति साधिक पल्योपम की और उत्कृष्ट स्थिति नौ पल्योपम की होती है । [प्र.] भगवन् ! ईशानकल्प में अपरिगृहीता देवियों की स्थिति कितनी है ? [उ.] गौतम ! जघन्य कुछ अधिक पल्योपम की है और उत्कृष्ट स्थिति पचपन पल्योपस की है। (४) सणकुमारे णं भंते ! कप्पे देवाणं केवइकालं ठिती पन्नत्ता ? गो० ! जह० दो सागरोवमाई उक्कोसेणं सत्त सागरोवमाई । [३९१-४ प्र.] भगवन् ! सनत्कुमारकल्प के देवों की स्थिति कितनी होती है ? [३९१-४ उ.] गौतम! जघन्य दो सागरोपम की और उत्कृष्टत: सात सागरोपम की है। (५) माहिंदे णं भंते! कप्पे देवाणं जाव गोतमा ! जह० साइरेगाई दो सागरोवमाई, उक्को० साइरेगाई सत्त सागरोवमाई । [३९१-५ प्र.] भगवन् ! माहेन्द्रकल्प में देवों की स्थिति का प्रमाण कितना है ? [३९१-५ उ.] गौतम! जघन्य स्थिति साधिक दो सागरोपम की और उत्कृष्ट स्थिति कुछ अधिक सात सागरोपम प्रमाण है। (६) बंभलोए णं भंते ! कप्पे देवाणं जाव गोतमा ! जह० सत्त सागरोवमाई उक्कोसेणं दस सागरोवमाइं । [३९१-६ प्र.] भगवन् ! ब्रह्मलोककल्प के देवों की स्थिति कितनी है ?
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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