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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण २९९ विवेचन— सूत्र में मनुष्यगति के जीवों की आयुस्थिति का जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा निरूपण किया है। जम्बूद्वीप, धातकीखंड और अर्धपुष्करवरद्वीप मनुष्यक्षेत्र हैं। इतने क्षेत्र में ही मनुष्यों का निवास है। ये द्वीप अनेक खंडों (भरत आदि क्षेत्रों) में विभक्त हैं। भरत, ऐरवत तथा देवकुरु और उत्तरकुरु को छोड़कर विदेह क्षेत्र में कालपरिवर्तन के अनुसार अकर्मभूमि रूप अवस्था भी होती है और कर्मभूमि रूप भी। यहां जो मनुष्यों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की बताई है वह उत्तम भोगभूमि क्षेत्र देवकुरु और उत्तरकुरु की अपेक्षा जानना चाहिए। ये दोनों विदेहक्षेत्रान्तर्वर्ती स्थानविशेष हैं। यहां सदैव उत्तम भोगभूमि रूप स्थिति रहती है और कालापेक्षया सुषमासुषमा काल प्रवर्तमान रहता है। व्यंतर देवों की स्थिति . ३८९. वाणमंतराणं भंते ! देवाणं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता । गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साइं उक्कोसेणं पलिओवमं । वाणमंतरीणं भंते ! देवीणं केवतिकालं ठिती पण्णत्ता ? गो० ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं । [३८९ प्र.] भगवन् ! वाणव्यंतर देवों की स्थिति कितने काल की प्रतिपादन की गई है ? [३८९ उ.] गौतम ! जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्योपम की होती है। [प्र.] भगवन् ! वाणव्यंतरों की देवियों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की और उत्कृष्ट स्थिति अर्धपल्योपम की होती है। विवेचन- उपर्युक्त प्रश्नोत्तरों में व्यंतर देवनिकाय के देव-देवियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया है। व्यंतर देवों और देवियों की जघन्य स्थिति तो एक समान दस हजार वर्ष की है, किन्तु उत्कृष्ट स्थिति में अन्तर है। देवों की स्थिति एक पल्योपम किन्तु देवियों की अर्धपल्योपम प्रमाण है। ज्योतिष्क देवों की स्थिति ३९०. (१) जोतिसियाणं भंते ! देवाणं जाव । गोयमा ! जह० सातिरेगं अट्ठभागपलिओवमं उक्कोसेणं पलिओवमं वाससतसहस्समब्भहियं । जोइसीणं भंते ! देवीणं जाव गो० ! जह० अट्ठभागपलिओवमं उक्कोसेणं अद्धपलिओवमं पण्णासाए वाससहस्सेहिं अब्भहियं । [३९०-१ प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवों की स्थिति कितने काल की बताई है ? [३९०-१ उ.] गौतम ! जघन्य कुछ अधिक पल्योपम के आठवें भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति एक लाख वर्ष अधिक पल्योपम की होती है। [प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देवियों की स्थिति कितने काल की बताई है ? [उ.] गौतम ! उनकी जघन्य स्थिति पल्योपम का आठवां भाग प्रमाण और उत्कृष्ट स्थिति पचास हजार वर्ष अधिक अर्धपल्योपम की होती है।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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