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________________ प्रमाणाधिकारनिरूपण [उत्तर] यह यथार्थ नहीं है। उस परमाणु को जलरूपी शस्त्र आक्रांत नहीं कर सकता है। अत्यन्त तीक्ष्ण शस्त्र से भी कोई जिसका छेदन-भेदन करने में समर्थ नहीं है, उसको ज्ञानसिद्ध केवली भगवान् परमाणु कहते हैं। वह सर्व प्रमाणों का आदि प्रमाण है अर्थात् व्यावहारिक परमाणु प्रमाणों की आद्य इकाई है । १०० २४५ विवेचन — परमाणु पुद्गलद्रव्य की पर्याय है । अतएव प्रस्तुत सूत्र में शिष्य ने पुद्गल के सड़न गलन धर्म को ध्यान में रखकर अपनी जिज्ञासा व्यक्त की है। उत्तर में आचार्य ने बतलाया कि ऐसा कहना, मानना, सोचना यथार्थ नहीं है। क्योंकि शस्त्र का प्रभाव तो स्थूल स्कन्धों—पदार्थों पर ही पड़ता है, सूक्ष्म रूप में परिणत पदार्थों पर नहीं । यद्यपि यह व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म (निश्चय) परमाणुओं का पिंड होने से स्कन्ध रूप है, किन्तु स्वभावतः सूक्ष्म रूप से परिणत होने के कारण उस स्कन्ध (व्यवहारपरमाणु) पर अग्नि, जल आदि किसी भी प्रतिपक्षी का प्रभाव नहीं पड़ता है 1 गाथोक्त ‘सिद्धा' पद से सिद्धगति को प्राप्त हुए सिद्ध भगवन्त गृहीत नहीं हुए हैं। मुक्ति में विराजमान सिद्ध भगवान् वचन- योग से रहित हैं। इसलिए यहां पर सिद्ध शब्द का अर्थ ज्ञानसिद्धभवस्थकेवली भगवान् जानना चाहिए। परमाणु की विशेषता बतलाने के बाद अब उसके द्वारा निष्पन्न होने वाले कार्यों का वर्णन करते हैं । व्यावहारिक परमाणु का कार्य ३४४. अणंताणं वावहारियपरमाणुपोग्गलाणं समुदयसमितिसमागमेणं सा एगा उस्सण्हसहिया ति वा सण्हसहिया ति वा उड्ढरेणू ति वा तसरेणू ति वा रहरेणू ति वा । अट्ठ उस्सण्हसहियाओ सा एगा सण्हसहिया । अट्ठ सहसहियाओ सा एगा उड्ढरेणू । अट्ठ उड्डरेणूओ सा एगा तसरेणू । अट्ठ तसरेणूओ सा एगा रहरेणू । अट्ठ रहरेणूओ देवकुरु - उत्तरकुरुयाणं मणुयाणं से एगे वालग्गे । अट्ठ देवकुरु - उत्तरकुरुयाणं मणुयाणं वालग्गा हरिवास-रम्मगवासाणं मणुयाणं से एगे वालग्गे । अट्ठ हरिवस्स - रम्मयवासाणं मणुस्साणं वालग्गा हेमवय- हेरण्णवयवासाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे । अट्ठ हेमवय- हेरण्णवयवासाणं मणुस्साणं वालग्गा पुव्वविदेह - अवरविदेहाणं मणुस्साणं ते एगे वालग्गे । अट्ठ पुव्वविदेह - अवरविदेहाणं मणूसाणं वालग्गा भरहेरवयाणं मणुस्साणं से एगे वालग्गे । अट्ठ भरहेरवयाणं मणूसाणं वालग्गा सा एगा लिक्खा । अट्ठ लिक्खाओ सा एगा जूया । अट्ठ जूयातो से एगे जवमज्झे । अट्ठ जवमज्झे से एगे उस्सेहंगुले । [३४४] उन अनन्तानन्त व्यावहारिक परमाणुओं के समुदयसमितिसमागम ( समुदाय के एकत्र होने) से एक उत्श्चलक्ष्णश्लक्ष्णिका, श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका, ऊर्ध्वरेणु, त्रसरेणु और रथरेणु उत्पन्न होता हैं । आठ उत्श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका की एक श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका होती है। आठ श्लक्ष्णश्लक्ष्णिका का एक ऊर्ध्वरेणु होता है। आठ ऊर्ध्वरेणुओं का एक त्रसरेणु, आठ त्रसरेणुओं का एक रथरेणु, आठ रथरेणुओं का एक देवकुरुउत्तरकुरु के मनुष्यों का बालाग्र, आठ देवकरु- उत्तरकुरु के मनुष्यों के बालाग्रों का एक हरिवर्ष - रम्यक्वर्ष के सिद्धत्ति-ज्ञानसिद्धाः केवलिनो, न तु सिद्धाः सिद्धिगताः, तेषां वदनस्यासम्भवादिति । अनुयोगद्वारवृत्ति पत्र १६१ १.
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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