SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामाधिकारनिरूपण विवेचन — सूत्र में नोगौणनाम का स्वरूप कतिपय उदाहरणों द्वारा बतलाया गया है। यह नाम गुण-धर्मस्वभाव आदि की अपेक्षा किये बिना मात्र लोकरूढ़ि से निष्पन्न होता है। इस प्रकार के नाम अयथार्थ होने पर भी लोक में प्रचलित हैं । सूत्रगत उदाहरण स्पष्ट हैं। जैसे 'सकुन्त' यह नाम अयथार्थ है । क्योंकि व्युत्पत्ति के अनुसार जो कुन्त———— शस्त्र - विशेष— भाला से युक्त हो वही सकुन्त है । किन्तु पक्षी को भी सकुन्त (शकुन्त) कहा जाता है। इसी प्रकार अन्य उदाहरणों के लिए जानना चाहिए। आदानपदनिष्पन्ननाम १९३ २६६. से किं तं आयाणपदेणं ? आयाणपदेणं आवंती चातुरंगिज्जं अहातत्थिज्जं अद्दइज्जं असंखयं जण्णइज्जं पुरिसइज्जं (उसुकारिज्जं ) एलइज्जं वीरियं धम्मो मग्गो समोसरणं जमईयं । से तं अयाणपदेणं । [२६६ प्र.] भगवन् ! आदाननिष्पन्ननाम का क्या स्वरूप ? [२६६ उ.] आयुष्मन् ! आवंती, चातुरंगिज्जं, असंखयं, अहातत्थिज्जं अद्दइज्जं जण्णइज्जं, पुरिसइज्जं (उसुकारिज्जं), एलइज्जं, वीरियं, धम्म, मग्ग, समोसरणं, जमईयं आदि आदानपदनिष्पन्ननाम हैं । विवेचन — सूत्र में आदानपदनिष्पन्ननाम का स्वरूप बताने के लिए सम्बन्धित उदाहरणों का उल्लेख किया 1 किसी शास्त्र के अध्ययन आदि के प्रारंभ में उच्चरित पद आदान पद कहलाता है। उस के आधार से निष्पन्न — रखे जाने वाले नाम को आदानपदनिष्पन्ननाम कहते हैं । जैसे आवंती— इस आचारांगसूत्र के पांचवें अध्ययन के नाम का कारण उसके प्रारंभ में उच्चरित 'आवंती केयावंती' पद है। 'चाउरंगिज्जं' यह उत्तराध्ययनसूत्र के तीसरे अध्ययन का नाम है, जो उस अध्ययन के प्रारंभ में आगत 'चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जंतुणो' गाथा के आधार से रखा है। 'असंखयं जीविय मा पमायए' इस वाक्य में प्रयुक्त 'असंखयं' शब्द उत्तराध्ययनसूत्र के चतुर्थ अध्ययन नाम का कारण है । 'जह सुत्तं तह अत्थो' गाथोक्त जह तह इन दो पदों के आधार से सूत्रकृतांगसूत्र के तेरहवें अध्ययन का 'जहतह' नामकरण किया गया है। इसी प्रकार 'पुराकडं अद्दइयं सुणेह' इस सूत्रकृतांगसूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के छठे अध्ययन की पहली गाथा के ' अद्दइयं' पद के आधार से इस अध्ययन का नाम 'अद्दइज्जं ' है । उत्तराध्ययनसूत्र के पच्चीसवें अध्ययन के प्रारंभ में यह गाथा है— माहणकुलसंभूओ आसि विप्पो महायसो । जायई जम जन्नमि जयघोसो त्ति नामओ ॥ इस गाथा में आगत 'जन्न' पद के आधार इस अध्ययन का नाम 'जन्नइज्जं' रखा है। इसी प्रकार चौदहवें अध्ययन की पहली गाथा में आगत उसुयार पद के आधार से उस अध्ययन का नाम 'उसुकारिज्जं' है तथा सातवें अध्ययन के प्रारंभ में 'एलयं' पद होने से उस अध्ययन का नाम 'एलइज्जं ' है ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy