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________________ अनुयोगद्वारसूत्र मंगी आदि इक्कीस मूर्च्छनाओं की विशेष जानकारी के लिए भरतमुनि का नाट्यशास्त्र आदि ग्रन्थ देखिये । सप्त स्वरोत्पत्ति आदि विषयक जिज्ञासाएँ : समाधान १७८ (१० अ ) सत्त स्सरा कतो संभवंति ? गीयस्स का हवति जोणी ? कतिसमया ऊसासा ? कति वा गीयस्स आगारा ॥ ४३ ॥ सत्त सरा नाभीओ संभवंति, गीतं च रुन्नजोणीयं । पायसमा उस्सासा, तिण्णि य गीयस्स आगारा ॥ ४४॥ आदिमिउ आरभंता, समुव्वहंता य मज्झगारम्मि । अवसाणे य झवेंता, तिन्नि वि गीयस्स आगारा ॥ ४५ ॥ [२६०-१०-अ] प्र. —– सप्त स्वर कहां से किससे उत्पन्न होते हैं ? गीत की योनि क्या है ? इसके उच्छ्वासकाल का समयप्रमाण कितना है ? गीत के कितने आकार होते हैं ? उत्तर- सातों स्वर नाभि से उत्पन्न होते हैं । रुदन गीत की योनि जाति है । पादसम जितने समय में किसी छन्द का एक चरण गाया जाता है, उतना उसका (गीत का) उच्छ्वासकाल होता है। गीत के तीन आकार होते हैंआदि में मृदु, मध्य में तीव्र (तार) और अंत में मंद। इस प्रकार से गीत के तीन आकार जानने चाहिए । ४३, ४४, ४५ विवेचन — इन तीन गाथाओं में से पहली गाथा में गीत के स्वरों के उत्पत्तिस्थान आदि सम्बन्धी चार प्रश्न हैं और अगली दो गाथाओं में प्रश्नों के उत्तर दिये हैं । गाथागत विशेष शब्द — रुन्नजोणियं गीत की योनि रुदन है, अथवा रोने की जाति जैसा है। आगाराआकारा—स्वरूपविशेष । अवसाणे— अवसाने—– अंत में । झवेंता— क्षपयन्तः समाप्त करते समय । गीतगायक की योग्यता ( १० आ ) छद्दोसे अट्ठ गुणे तिण्णि य वित्ताणि दोणि भणितीओ । जो णाही सो गाहिति सुसिक्खतो रंगमज्झमि ॥ ४६ ॥ [२६०-१० - आ] संगीत के छह दोषों, आठ गुणों, तीन वृत्तों और दो भणितियों को यथावत् जानने वाला सुशिक्षित — गानकलाकुशल व्यक्ति रंगमंच पर गायेगा । ४६ विवेचन — सूत्रकार ने गानकला में प्रवीण व्यक्ति की योग्यता का निर्देश किया है कि वह गीत के दोष- गुण आदि का मर्मज्ञ हो । अतः आगे गीत के दोषों और गुणों आदि का निरूपण करते हैं । गीत के दोष (१० इ) भीयं दुयमुष्पिच्छं उत्तालं च कमसो मुणेयव्वं । काकस्सरमणुनासं छ होसा होंति गीयस्स ॥ ४७ ॥ [२६०-१० - इ] गीत के छह दोष इस प्रकार हैं
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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