SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नामाधिकारनिरूपण १६९ खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ४ अस्थि णामे उवसमिए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ५। [२५६] चार भावों के संयोग से निष्पन्न सानिपातिकभाव के पांच भंगों के नाम इस प्रकार हैं—१. औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्नभाव, २. औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव.३. औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव. ४. औदयिक-क्षायिक-क्षायोपशमि पारिणामिकनिष्पन्नभाव, ५. औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकनिष्पन्नभाव। २५७. कतरे से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खइयं सम्मत्तं ख्ओवसमियाइं इंदियाई, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए खओवसमनिप्पन्ने १ । [२५७-१ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है? [२५७-१ उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्य, औपशमिकभाव में उपशांत कषाय, क्षायिकभाव में क्षायिकसम्यक्त्व और क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां, यह औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-क्षायोपशमिकभावनिष्पन्न सानिपातिकभाव का स्वरूप है। १ कतरे से नामे उदइए उवसमिए खइए पारिणमियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसता कसाया खइयं सम्मत्तं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खइए पारिणामियनिप्पन्ने २ । .. [२५७-२ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? . [२५७-२ उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांत कषाय, क्षायिकभाव में क्षायिक सम्यक्त्व और पारिणामिकभाव में जीवत्व, यह औदयिक-औपशमिक-क्षायिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का स्वरूप है। २ कतरे से णामे उदइए उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे उवसंता कसाया खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से णामे उदइए उवसमिए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ३ । [२५७-३ प्र.] भगवन् ! औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव का क्या स्वरूप है ? [२५७-३ उ.] आयुष्मन् ! औदयिकभाव में मनुष्यगति, औपशमिकभाव में उपशांत कषाय, क्षायोपशमिकभाव में इन्द्रियां और पारिणामिकभाव में जीवत्व, इस प्रकार से औदयिक-औपशमिक-क्षायोपशमिक-पारिणामिकभावनिष्पन्न सान्निपातिकभाव के तृतीय भंग का स्वरूप जानना चाहिए। ३ कतरे से णामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ? उदए त्ति मणूसे खइयं सम्मत्तं खओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे, एस णं से नामे उदइए खइए खओवसमिए पारिणामियनिप्पन्ने ४ ।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy