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________________ १२३ आनुपूर्वीनिरूपण (३) से किं तं पच्छाणुपुवी ? पच्छाणुपुव्वी सव्वद्धा अणागतद्धा जाव समए । से तं पच्छाणुपुव्वी । [२०२-३ प्र.] भगवन् ! पश्चानुपूर्वी का क्या स्वरूप है ? । [२०२-३ उ.] आयुष्मन् ! सर्वाद्धा, अनागताद्धा यावत् समय पर्यन्त व्युत्क्रम से पदों की स्थापना करना पश्चानुपूर्वी है। (४) से किं तं अणाणुपुव्वी ? अणाणुपुव्वी एयाए चेव एगादियाए एगुत्तरियाए अणंतगच्छगयाए सेढीए अण्णमण्णब्भासो दुरूवूणे । से तं अणाणुपुव्वी । से तं ओवणिहिया कालाणुपुव्वी । से तं कालाणुपुव्वी । [२०२-४ प्र.] भगवन् ! अनानुपूर्वी का स्वरूप क्या है ? [२०२-४ उ.] आयुष्मन् ! इन्हीं की (समयादि की) एक से प्रारंभ कर एकोत्तर वृद्धि द्वारा सर्वाद्धा पर्यन्त की श्रेणी स्थापित कर परस्पर गुणाकार से निष्पन्न राशि में से आद्य और अंतिम दो भंगों को कम करने के बाद बचे शेष भंग अनानुपूर्वी हैं। इस प्रकार से औपनिधिकी कालानुपूर्वी और साथ ही कालानुपूर्वी का वर्णन पूर्ण हुआ। विवेचन— सूत्र में प्रकारान्तर से औपनिधिकी कालानुपूर्वी का स्वरूप बताया है और अंत में कालानुपूर्वी के वर्णन की समाप्ति का संकेत किया है। सूत्रोक्त औपनिधिकी कालानुपूर्वी की वक्तव्यता का स्पष्टीकरण इस प्रकार है औपनिधिको कालानुपूर्वी के दोनों प्रकारों के अवान्तर भेदों के नाम समान हैं। प्रथम प्रकार में काल और द्रव्य का अभेदोपचार करके समयनिष्ठ द्रव्य का कालानुपूर्वी के रूप में और दूसरे प्रकार में कालगणना के क्रम का कथन किया है। समय काल का सबसे सूक्ष्म अंश और काल गणना की आद्य इकाई है। इससे समस्त आवलिका आदि रूप काल संज्ञाओं की निष्पत्ति होती है। इसीलिए सूत्रकार ने सर्वप्रथम इसका उपन्यास किया है। समय आदि का वर्णन आगे किया जाएगा। समय से लेकर सर्वाद्धा पर्यन्त अनुक्रम से उपन्यास पूर्वानुपूर्वी, व्युत्क्रम से उपन्यास पश्चानुपूर्वी एवं पूर्वानुपूर्वी और पश्चानुपूर्वी गणना के आद्य और अंत भंग को छोड़कर यथेच्छ किसी भी भंग से उपन्यास करना अनानुपूर्वी रूप है। इस प्रकार समग्र रूप से कालानुपूर्वी का वर्णन करने के अनन्तर अब क्रमप्राप्त उत्कीर्तानुपूर्वी का निरूपण करते हैं। उत्कीर्तनानुपूर्वीनिरूपण २०३. (१) से किं तं उक्कित्तणाणुपुव्वी ? उक्कित्तणाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता । तं जहा—पुव्वाणुपुव्वी १ पच्छाणुपुव्वी २ अणाणुपुव्वी ३।
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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