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________________ आनुपूर्वीनिरूपण (ङ५) कालप्ररूपणा १९५. ( १ ) णेगम-ववहाराणं आणुपुव्विदव्वाइं कालतो केवचिरं होंति ? एगं दव्वं पडुच्च जहणेणं तिण्णि समया उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, नाणादव्वाइं पडुच्च सव्वद्धा । [१९५-१ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत आनुपूर्वीद्रव्य कालापेक्षा (आनुपूर्वी रूप में) कितने काल तक रहते हैं। ११७ [१९५-१ उ.] आयुष्मन् ! एक आनुपूर्वीद्रव्य की अपेक्षा जघन्य स्थिति तीन समय की और उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात काल की है। अनेक आनुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा स्थिति सर्वकालिक है। (२) णेगम-ववहाराणं अणाणुपुव्विदव्वाइं कालओ केवचिरं होंति ? एगदव्वं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं एक्कं समयं, नाणादव्वाइं पडुच्च सवद्धा । [१९५-२ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अनानुपूर्वीद्रव्य कालापेक्षा (अनानुपूर्वी रूप में) कितने काल तक रहते हैं ? [१९५-२ उ.] आयुष्मन् ! एक द्रव्यापेक्षया तो अजघन्य और अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय की तथा अनेक द्रव्यों की अपेक्षा सर्वकालिक है । (३) णेगम-ववहाराणं अवत्तव्वयदव्वाइं कालतो केवचिरं होंति ? एगं दव्वं पडुच्च अजहण्णमणुक्कोसेणं दो समया, नाणादव्वाइं पडुच्च सव्वद्धा । [१९५-३ प्र.] भगवन् ! नैगम-व्यवहारनयसम्मत अवक्तव्यकद्रव्य कालापेक्षया (अवक्तव्यक रूप में) कितने काल रहते हैं ? [१९५-३ उ.] आयुष्मन् ! एक द्रव्य की अपेक्षा अजघन्य - अनुत्कृष्ट स्थिति दो समय की है और अनेक द्रव्यों की अपेक्षा स्थिति सर्वकालिक है । विवेचन — यहां अनुगम के पांचवें कालद्वार की प्ररूपणा की है। एक आनुपूर्वीद्रव्य की जघन्य स्थिति तीन समय और उत्कृष्ट स्थिति असंख्यात समय की बताने का कारण यह है कि आनुपूर्वीद्रव्यों में तीन समय की स्थिति वाले द्रव्य सबसे कम हैं और वे तीन समय तक ही आनुपूर्वी के रूप में रहते हैं। इसलिए एकवचनान्त आनुपूर्वी द्रव्यों की जघन्य स्थिति तीन समय प्रमाण कही है और असंख्यात समय की स्थिति कहने का कारण यह है कि वह द्रव्य असंख्यात काल बाद आनुपूर्वी के रूप में रहता ही नहीं है। नाना आनुपूर्वीद्रव्यों की अपेक्षा स्थिति सर्वकालिक इसलिए है कि नाना आनुपूर्वीद्रव्यों का सदैव सद्भाव रहता है। एक-एक अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्य की स्थिति मात्र क्रमशः एक समय और दो समय प्रमाण होने से इन दोनों के विषय में जघन्य और उत्कृष्ट की अपेक्षा विचार किया जाना सम्भव नहीं होने से अजघन्य और अनुत्कृष्ट काल स्थिति एक और दो समय की बतलाई है। क्योंकि एक समय की स्थिति वाला द्रव्य अनानुपूर्वी और
SR No.003468
Book TitleAgam 32 Chulika 01 Anuyogdwar Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorAryarakshit
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla, Devkumar Jain Shastri
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1987
Total Pages553
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_anuyogdwar
File Size11 MB
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