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________________ ३४२] [व्यवहारसूत्र १२. वर्षावास में रहा हुआ भिक्षु, जिनको अग्रणी मानकर रह रहा हो और वह यदि कालधर्मप्राप्त हो जाय तो शेष भिक्षुओं में जो भिक्षु योग्य हो उसे अग्रणी बनाना चाहिये। ____यदि अन्य कोई भिक्षु अग्रणी होने योग्य न हो और स्वयं (रत्नाधिक) ने भी निशीथ आदि का अध्ययन पूर्ण न किया हो तो उसे मार्ग में विश्राम के लिए एक-एक रात्रि ठहरते हुए जिस दिशा में अन्य स्वधर्मी हों उस दिशा में जाना कल्पता है। मार्ग में उसे विचरने के लक्ष्य से ठहरना नहीं कल्पता है। यदि रोगादि का कारण हो तो अधिक ठहरना कल्पता है। रोगादि के समाप्त होने पर यदि कोई कहे कि-'हे आर्य! एक या दो रात ठहरो' तो उसे एक या दो रात और ठहरना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से अधिक ठहरना नहीं कल्पता है। जो भिक्षु एक या दो रात से अधिक ठहरता है, वह मर्यादा-उल्लंघन के कारण दीक्षाछेद या तपरूप प्रायश्चित्त का पात्र होता है। विवेचन-विचरण या चातुर्मास करने वाले भिक्षुओं में एक कल्पाक अर्थात् संघाड़ा-प्रमुख होना आवश्यक है। जिसके लिए उद्देशक ३ सू. १ में गणधारण करने वाला अर्थात् गणधर कहा है तथा उसे श्रुत एवं दीक्षापर्याय से संपन्न होना आवश्यक कहा गया है। अतः तीन वर्ष की दीक्षापर्याय और आचारांगसूत्र एवं निशीथसूत्र को कण्ठस्थ धारण करने वाला ही गण धारण कर सकता है। शेष भिक्षु उसको प्रमुख मानकर उसकी आज्ञा में रहते हैं। उस प्रमुख के सिवाय उस संघाटक में अन्य भी एक या अनेक संघाड़ा-प्रमुख होने के योग्य हो सकते हैं अर्थात् वे अधिक दीक्षापर्याय श्रुत धारण करने वाले हो सकते हैं। कभी एक प्रमुख के अतिरिक्त सभी साधु अगीतार्थ या नवदीक्षित ही हो सकते हैं। विचरण या चातुर्मास करने वाले संघाटक का प्रमुख भिक्षु यदि कालधर्म को प्राप्त हो जाय तो शेष साधुओं में से रत्नाधिक भिक्षु प्रमुख पद स्वीकार करे। यदि वह स्वयं श्रुत से संपन्न न हो तो अन्य योग्य को प्रमुख पद पर स्थापित करे। यदि शेष रहे साधुओं में एक भी प्रमुख होने योग्य न हो तो उन्हें चातुर्मास में रहना या विचरण करना नहीं कल्पता है, किन्तु जिस दिशा में अन्य योग्य साधर्मिक भिक्षु निकट हों, उनके समीप में पहुँच जाना चाहिये। ऐसी स्थिति में चातुर्मास में भी विहार करना आवश्यक हो जाता है तथा हेमंत ग्रीष्म ऋतु में भी अधिक रुकने की स्वीकृति दे दी हो तो भी वहां से विहार करना आवश्यक हो जाता है। ____ जब तक अन्य साधर्मिक भिक्षुओं के पास न पहुँचे तब तक मार्ग में एक दिन की विश्रांति लेने के अतिरिक्त कहीं पर भी अधिक रुकना उन्हें नहीं कल्पता है। किसी को कोई शारीरिक व्याधि हो जाय तो उपचार के लिए ठहरा जा सकता है। व्याधि
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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