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________________ [ व्यवहारसूत्र २५. एकपक्षीय अर्थात् एक ही आचार्य के पास दीक्षा और श्रुत ग्रहण करने वाले भिक्षु को अल्पकाल के लिए अथवा यावज्जीवन के लिए आचार्य या उपाध्याय पद पर स्थापित करना या उसे धारण करना कल्पता है अथवा परिस्थितिवश कभी जिसमें गण का हित हो वैसा भी किया जा सकता है। विवेचन - आचार्य उपाध्याय को अपनी उपस्थिति में ही संघ की व्यवस्था बराबर बनी रहे, इसके लिए योग्य आचार्य और उपाध्याय की नियुक्ति कर देनी चाहिए। ३०० ] अल्पकालिक पदनियुक्ति के कारण १. वर्तमान आचार्य को किसी विशिष्ट रोग की चिकित्सा करने के लिए अथवा मोहचिकित्सा हेतु विशिष्ट तपसाधना करने के लिए संघभार से मुक्त होना हो, २. अन्य आचार्य उपाध्याय के पास अध्ययन करने हेतु जाना हो, अथवा उन्हें अध्ययन कराने एवं सहयोग देने जाना हो, ३. परिस्थितिवश अल्पकाल के लिए संयम छोड़ना आवश्यक हो, ४. पदनियुक्ति के समय पर योग्य भिक्षु का आवश्यक अध्ययन अपूर्ण हो, इत्यादि परिस्थितियों में अल्पकालिक पद दिया जाता है। जीवनपर्यंत पदनियुक्ति के कारण १. आचार्य उपाध्याय को अपना मरण-समय निकट होने का ज्ञान होने पर । २. अतिवृद्धता या दीर्घकालीन असाध्य रोग हो जाने पर । ३. आचार्य उपाध्याय को जिनकल्प आदि कोई विशिष्ट साधना करनी हो । ४. आचार्य को संयम का पूर्णतया त्याग करना हो । ५. ब्रह्मचर्य का पालन करना अशक्य हो । ६. स्वगच्छ का त्याग कर अन्यगच्छ में जाना हो । इन स्थितियों में आचार्य पदयोग्य भिक्षु को जीवनपर्यंत के लिए पद दिया जाता है। भाष्यकार ने यहां दो प्रकार के आचार्य कहे हैं - १. सापेक्ष, २. निरपेक्ष । जो अपने जीवनकाल में ही उचित अवसर पर योग्य भिक्षु को अपने पद पर नियुक्त कर देता है, वह 'सापेक्ष' कहा जाता है। जो उचित अवसर पर योग्य भिक्षु को अपने पद पर नियुक्त नहीं करता है और उपेक्षा करता हुआ काल कर जाता है या अयोग्य को नियुक्त करता है, वह 'निरपेक्ष' कहा जाता है। क्योंकि उसके काल करने के बाद गच्छ में कषाय कलह आदि की वृद्धि हो जाती है, जिससे गच्छ की व्यवस्था भंग हो जाती है। सूत्र में कहे गए एकपाक्षिक शब्द की व्याख्या दुविहो य एगपक्खी, पवज्ज सुए य होई नायव्वो । सुत्तम्मि एगवायण, पवज्जाए कुलिव्वादी ॥ - व्यव. भाष्य गा. ३२५
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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