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________________ ६-९ प्रथम उद्देशक] [१५५ इस सूत्र से एवं आचारांगसूत्र से यह निर्णय हो जाता है कि संयमोन्नति का मुख्य लक्ष्य रखते हुए एवं अपनी क्षमता का ध्यान रखते हुए किसी भी क्षेत्र में विचरण किया जा सकता है, किन्तु सामान्यतया आर्यक्षेत्र से बाहर विचरण करने का निषेध ही समझना चाहिए। सूत्र में आर्यक्षेत्र के चारों दिशाओं के किनारे पर आए देशों के नाम कहे गए हैं, किन्तु दक्षिण दिशा में कच्छ देश न कहकर वहां की प्रसिद्ध नगरी 'कोसम्बी' का कथन किया गया है। थूणा देश का नाम एवं उसकी मुख्य नगरी का नाम उपर्युक्त पच्चीस आर्यक्षेत्रों में नहीं है, इसका कारण नामों की अनेकता या भिन्नता होना ही है। प्रथम उद्देशक का सारांश सूत्र १-५ वनस्पति के मूल से लेकर बीज पर्यन्त दस विभागों में जितने खाने योग्य विभाग हैं वे अचित्त होने पर ग्रहण किये जा सकते हैं, किन्तु साध्वी कन्द, मूल, फल आदि के अविधि से किए गए बड़े-बड़े टुकड़े अचित्त होने पर भी ग्रहण नहीं कर सकती है। ग्राम, नगर आदि में एक मास रहना कल्पता है। यदि उसके उपनगर आदि हों तो उनमें अलग-अलग अनेक मासकल्प तक ठहरा जा सकता है, किन्तु जहां रहे वहीं भिक्षा के लिये भ्रमण करना चाहिए, अन्य उपनगरों में नहीं। १०-११ एक परिक्षेप एवं एक गमनागमन के मार्ग वाले ग्रामादि में साधु-साध्वी को एक काल में नहीं रहना चाहिए, किन्तु उसमें अनेक मार्ग या द्वार हों तो वे एक काल में भी रह सकते हैं। १२-१३ पुरुषों के अत्यधिक गमनागमन वाले तिग्रहे, चौराहे या बाजार आदि में बने हुए उपाश्रयों में साध्वियों को नहीं रहना चाहिए, किन्तु साधु उन उपाश्रयों में ठहर सकते हैं। १४-१५ द्वार-रहित स्थान में साध्वियों को नहीं ठहरना चाहिए, परिस्थितिवश यदि ठहरना पड़े तो पर्दा लगाकर द्वार को बन्द कर लेना चाहिए। किन्तु ऐसे स्थानों पर भिक्षु ठहर सकते हैं। १६-१७ सुराही के आकार का प्रश्रवण-मात्रक साध्वी रख सकती है, किन्तु साधु नहीं रख सकता है। साधु-साध्वी को वस्त्र की चिलमिलिका (मच्छरदानी) रखना कल्पता है। पानी के किनारे साधु-साध्वी को बैठना आदि क्रियाएं नहीं करनी चाहिए। २०-२१ चित्रों से युक्त मकान में नहीं ठहरना चाहिए। २२-२४ साध्वियों को शय्यातर के संरक्षण में ही ठहरना चाहिए, किन्तु भिक्षु बिना संरक्षण के भी ठहर सकता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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