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________________ २६२] [ प्रज्ञापनासूत्र ] अल्पकषायवाले सम्मूर्च्छिम मनुष्य, उत्कट कषायवालों से सदा असंख्यातगुणा होते हैं । वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों और वैमानिकों में सामुद्घातिक अल्पबहुत्व की वक्तव्यता असुरकुमारों के समान समझनी चाहिए। २१३३. कति णं भंते! कसायसमुग्धाया पण्णत्ता ? - गोयमा ! चत्तारि कसायसमुग्धाया पण्णत्ता । तं जहा – कोहसमुग्धाए १ माणसमुग्धाए, २ मायासमुग्धाए ३ लोभसमुग्धा ४ । [२१३३ प्र.] भगवन्! कषायसमुद्घात कितने कहे हैं ? [२१३३ उ.] गौतम! कषायसमुद्घात चार कहे हैं, यथा (१) क्रोधसमुद्घात, (२) मानसमुद्घात (३) मायासमुद्घात और (४) लोभसमुद्घात । २१३४. [ १ ] णेरइयाणं भंते! कति कसायसमुग्घाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसायसमुग्धाया पण्णत्ता ? [२१३४-१ प्र.] भगवन्! नारकों के कितने कषायसमुद्घात कहे हैं ? [२१३४ उ.] गौतम! उनमें चारों कषायसमुद्घात कहे हैं । [२] एवं जाव वेमाणियाणं । [२१३४-२] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) वैमानिकों तक (प्रत्येक दण्डक में चार-चार कषायसमुद्घात कहे गये हैं) । २१३५. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स केवइया कोहसमुग्धाया अतीता ? गोयमा ! अनंता । केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अत्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा । [२१३५-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के कितने क्रोधसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [२१३५-२ उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन्! (उसके) भावी (क्रोधसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! ( भावी क्रोधसमुद्घात) किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते हैं। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं । [२] एवं जाव वेमाणियस्स । १. (क) वही, भा. ५, पृ. १९२७ - १९२८ (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. ७, पृ. ४४७
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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