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________________ [प्रज्ञापनासूत्र मृषावाद का अध्यवसाय लोकगत और अलोकगत समस्त-वस्तु-विषयक होना सम्भव है। इसलिए कहा गया है- 'सव्वदव्वेसु' सर्वद्रव्यों के विषय में मृषावादक्रिया का कारणभूत अध्यवसाय होता है। द्रव्य ग्रहण के उपलक्षण से 'सर्वपर्यायों' के विषय में भी समझ लेना चाहिए। अदत्तादान आदि क्रिया के विषय - अदत्तादान उसी वस्तु का हो सकता है, जो वस्तु ग्रहण या धारण की जा सकती है; इसलिए अदत्तादानक्रिया अन्य वस्तुविषयक नहीं होती, अतः कहा गया है'गहणधारणिज्जेसु दव्वेसु।' मैथुनक्रिया का कारणभूत मैथुनाध्यवसाय भी चित्र, काष्ठ, भित्ति, मूर्ति, पुतला आदि के रूपों या रूपसहगत स्त्री आदि विषयों में होता है। परिग्रह का अर्थ है- स्वत्व या स्वामित्व भाव से मूर्छा । वह प्राणियों के अन्तर में स्थित लोभवश समस्तवस्तुविषयक हो सकती है। इसीलिए कहा गया हैसव्वदव्वेसु । अभ्याख्यानादि के अर्थ एवं विषय- अभ्याख्यान- असद् दोषारोपण; यथा- अचोर को तू चोर है' कहना। पैशुन्य- किसी के परोक्ष में झूठे या सच्चे दोष प्रकट करना, चुगली खाना। परपरिवाद- अनेक लोगों के समक्ष दूसरे के दोषों का कथन करना। मायामृषा- मायासहित झूठ बोलना। यह महाकर्मबन्ध का हेतु है। मिथ्यादर्शनशल्य-मिथ्यात्वरूप तीक्ष्ण कांटा। अठारह पापस्थानकों में ५ महाव्रतों के अविरति रूप पांच पापस्थानक हैं। शेष पापस्थानों का इन्हीं पांचों में समावेश हो जाता है। ___ अट्ठारस एए दंडगा- ये (पूर्वोक्त पदों में उल्लिखित) दण्डक (आलापक) अठारह हैं। प्राणातिपादादि पापस्थान १८ होने से अठारह पापस्थानों को लेकर जीवों की क्रिया और उसके विषयों का यहां निर्देश किया गया है। क्रियाहेतुक कर्मप्रकृतिबन्ध की प्ररूपणा . १५८१.[१] जीवे णं भंते ! पाणाइवाएणं कति कम्मपगडीओ बंधति ? गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा। [१५८१-१ प्र.] भगवन् ! (एक) जीव (प्राणातिपातक्रिया के कारणभूत) प्राणातिपात (के अध्यवसाय) से कितनी कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है ? [उ.] गौतम ! सात अथवा आठ कर्मप्रकृतियाँ बाँधता है। [२] एवं णेरइए जाव णिरंतरं वेमाणिए। १. वही, मलयवृत्ति, पत्र ४३८ २. वही, मलयवृत्ति, पत्र ४३८ ३. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३८ ४. वही, मलयवृत्ति, पत्र ४३८
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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