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इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद]
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_ [१४९८-३] सम्मूर्छिम-जलचरों (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय) के औदारिकशरीर हुण्डसंस्थान वाले हैं। उनके पर्याप्तक, अपर्याप्तकों के (औदारिकशरीर) भी इसी प्रकार (हुण्डकसंस्थान) के होते हैं।
[४] गब्भवक्कंतियजलयरा छव्विहसंठाणसंठिया। एवं पजत्तापजत्तगा वि।
[१४९८-४] गर्भज-जलचर (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर) छहों प्रकार के संस्थान वाले हैं। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (गर्भज-जलचर-तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर भी (छहों संस्थान वाले समझने चाहिए।)
१४९९.[१] एवं थलयराण वि णव सुत्ताणि।
[१४९९-१] इसी प्रकार स्थलचर- (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-संस्थानों) के नौ सूत्र (भी पूर्वोक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए।)
[२] एवं चउप्पयथलयराण वि उरपरिसप्पथलयराण वि भुयपरिसप्पथलयराण वि।
[१४९९-२] इसी प्रकार चतुष्पद-स्थलचरों, उर:परिसर्प-स्थलचरों एवं भुजपरिसर्प-स्थलचरों के औदारिकशरीर संस्थानों के (नौ-नौ सूत्र) भी (पूर्वाक्त प्रकार से समझ लेने चाहिए।)
१५००.एवं खहयराण विणव सुत्ताणि।णवरंसव्वत्थ सम्मुच्छिमा हुंडसंठाणसंठिया भाणियव्वा, इयरे छसु वि।
[१५००] इसी प्रकार खेचरों के (औदारिकशरीरसंस्थानों के) भी नौ सूत्र (पूर्वोक्त प्रकार से समझने चाहिए।) विशेषता यह है कि सम्मूर्छिम (तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के औदारिकशरीर) सर्वत्र हुण्डकसंस्थान वाले कहने चाहिए। शेष सामान्य, गर्भज आदि के शरीर तो छहों संस्थानों वाले होते हैं।
१५०१.[१] मणूसपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते। तं जहा- समचउरंसे जाव हुंडे। [१५०१-१ प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, जैसे- समचतुरस्र यावत् हुण्डक्संस्थान वाला ।
[२] पजत्तापजत्ताण वि एवं चेव ।
[१५०१-२] पर्याप्तक और अपर्याप्त (मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) भी इसी प्रकार छहों संस्थान वाले होते हैं ।)
[३] गब्भवक्कंतियाणं वि एवं चेव । पजत्ताऽपज्जत्तगाण वि एवं चेव ।