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________________ तृतीय प्रतिपत्ति: समुद्रों के उदकों का आस्वाद ] [ ७७ तं जहा- लवणोदे, वरूणोदे, खीरोदे, घओदए । कइ णं भंते ! समुद्दा पराईए उदगरसेणं पण्णत्ता ? गोयमा ! तओ समुद्दा पगईए उदगरसेणं पण्णत्ता, तं जहा - कालोए, पुक्खरोए, सयंभूरमणे । अवसेसा समुद्दा उस्सण्णं खोयरसा पण्णत्ता समणाउसो ! १८६. (आ) भगवन् लवणसमुद्र के पानी का स्वाद कैसा है ? गौतम ! लवणसमुद्र का पानी मलिन, रजवाला, शैवालरहित चिरसंचित जल जैसा, खारा, कडुआ अतएव बहुसंख्यक द्विपद- चतुष्पद - मृग-पशु-पक्षी - सरीसृपों के लिए पीने योग्य नहीं है, किन्तु उसी जल में उत्पन्न और संवर्धित जीवों के लिये पेय है । भगवन्! कालोदसमुद्र के जल का आस्वाद कैसा है ? गौतम ! कालोदसमुद्र के जल का आस्वाद पेशल (मनोज्ञ), मांसल (परिपुष्ट करनेवाला), काला, उड़द की राशि की कृष्णकांति जैसी कांतिवाला है और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है। भगवन् ! पुष्करोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! वह स्वच्छ है, उत्तम जाति का है, हल्का है और स्फटिकमणि जैसी कांतिवाला और प्रकृति से अकृत्रिम रस वाला है 1 भगवन् ! वरूणोदसमुद्र का जल स्वाद में कैसा है ? गौतम ! जैसे पत्रासव, त्वचासव, खजूर का सार, भली-भांति पकाया हुआ इक्षुरस होता है तथा मेरक-कापिशायन-चन्द्रप्रभा - मनः शिला - वरसीधु - वरवारूणी तथा आठ बार पीसने से तैयार की गई जम्बूफल - मिश्रित वरप्रसन्ना जाति की मदिराएं उत्कृष्ट नशा देने वाली होती हैं, ओठों पर लगते ही आनन्द देनेवाली, कुछ-कुछ आँखें लाल करनेवाली, शीघ्र नशा उत्तेजना देने वाली होती हैं, जो आस्वाद्य, पुष्टिकारक एवं मनोज्ञ हैं, शुभ वर्णादि से युक्त हैं, उसके जैसा वह जल है । इस पर गौतम पूछते हैं कि क्या वह जल उक्त उपमाओं जैसा ही है ? इस पर भगवान् कहते हैं कि, "नहीं" यह बात ठीक नहीं है, इससे भी इष्टतर वह जल कहा गया है। भगवन् ! क्षीरोदसमुद्र का जल आस्वाद में कैसा हैं ? गौतम ! जैसे चातुरन्त चक्रवर्ती के लिए चतुःस्थान परिणत गोक्षीर (गाय का दूध) जो मंदमंद अग्नि पर पकाया गया हो, आदि और अन्त में मिसरी मिला हुआ हो, जो वर्ण गंध रस और स्पर्श से श्रेष्ठ हो, ऐसे दूध के समान वह जल है । यह उपमामात्र है, वह जल इससे भी अधिक इष्टतर है । घृतोदसमुद्र के जल का आस्वाद शरद् ऋतु के गाय के घी के मंड (सार-थर) के समान है जो सल्लकी और कनेर के फूल जैसा वर्णवाला है, भली-भांति गरम किया हुआ है, तत्काल नितारा हुआ है तथा जो श्रेष्ट वर्ण गंध-रस-स्पर्श से युक्त है । यह केवल उपमामात्र है, इससे भी अधिक इष्ट घृतोदसमुद्र का जल है ।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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