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________________ पच्चीसवां शतक : उद्देशक-७] [५१५ को त्यागना। (२) गणव्युत्सर्ग—अपने गण का त्याग करके 'जिनकल्प' अवस्था स्वीकार करना। (३) उपधिव्युत्सर्ग-किसी कल्पविशेष में उपधि (भण्डोपकरण) का भी त्याग करना। (४) भक्तपानव्युत्सर्ग—सदोष आहार-पानी का या यावज्जीव अनशन करके चतुर्विध आहार का त्याग करना। भावव्युत्सर्ग के तीन भेदों का स्वरूप इस प्रकार है(१) कषायव्युत्सर्ग-क्रोधादि कषायों का त्याग करना। (२) संसारव्युत्सर्ग-नरकादि-आयुबन्ध के कारणभूत मिथ्यात्व आदि का त्याग करना। (३) कर्मव्युत्सर्ग-कर्मबन्ध के कारणों का त्याग करना। कहीं-कहीं भावव्युत्सर्ग के चार भेद बताए हैं। वहाँ चौथा भेद बताया है—योगव्युत्सर्ग। योगव्युत्सर्ग के मनोयोगव्युत्सर्ग, वचनयोगव्युत्सर्ग और काययोगव्युत्सर्ग, ये तीन भेद हैं । ___ आभ्यन्तर तप का प्रभाव–मोक्षप्राप्ति का अन्तरंग कारण आभ्यन्तर तप है। अन्तर्दृष्टि आत्मार्थी एवं मुमुक्षु साधक ही आभ्यन्तर तप को अपनाता है और वही इन्हें तपरूप से श्रद्धापूर्वक मानता है। इस तप का प्रभाव बाह्य शरीर पर नहीं पड़ता, किन्तु अन्तरंग राग-द्वेष, कषाय आदि पर पड़ता है। ॥ पच्चीसवाँ शतक : सप्तम उद्देशक सम्पूर्ण॥ ॐॐॐ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ९२७ (ग) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा.७, पृ. ३५३३-३४ २. वही भा. ७. पृ. ३५३४
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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