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________________ १८४] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नपुंसकवेदी ही होते हैं। उनकी स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की होती है। उनके अध्यवसाय प्रशस्त और अप्रशस्त, दोनों प्रकार के होते हैं । अनुबन्ध स्थिति के अनुसार होता है। ४. से णं भंते ! पुढविकाइए पुणरवि 'पुढविकाइए' त्ति केवतियं कालं सेवेजा ? केवतियं कालं गतिरागर्ति करेजा? गोयमा ! भवाएसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेजाई भवग्गहणाई। कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता, उक्कोसेणं असंखेनं कालं, एवतियं जाव करेजा। [ पढमो गमओ]। [४ प्र.] भगवन् ! वह पृथ्वीकायिक मर कर पुनः पृथ्वीकायिक रूप में उत्पन्न हो तो इस प्रकार कितने काल तक सेवन करता है और कितने काल तक गमनागमन करता रहता है ? [४ उ.] गौतम ! भव की अपेक्षा से—वह जघन्य दो भव एवं उत्कृष्ट असंख्यात भव ग्रहण करता है और काल की अपेक्षा से—वह जघन्य दो अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात काल, इतने काल तक यावत् गमनागमन करता रहता है। [सू. २-३-४ प्रथम गमक] ५. सो चेव जहन्नकालद्वितीएसु उववन्नो, जहन्नेणं अंतोमुत्तद्वितीएसु, उक्कोसण वि अंतोमुहुत्तद्वितीएसु। एवं चेव वत्तव्वया निरवसेसा। [बीओ गमओ] [५] यदि वह (पृथ्वीकायिक) जघन्य काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिक में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। इस प्रकार समग्र वक्तव्यता जाननी चाहिए। [सू. ५. द्वितीय गमक] । ६. सो चेव उक्कोसकालट्ठितीएसु उववनो, जहन्नेणं बावीसवाससहस्सद्वितीएसु, उक्कोसेण वि बावीसवाससहस्सद्वितीएसु। सेसं चेव जाव अणुबंधो त्ति, णवरं जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा। भवाएसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई। कालएसेणं जहन्नेणं बावीसं वाससहस्साइं अंतोमुत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छावत्तरं वाससयसहस्सं, एवतियं कालं जाव करेजा। [तइओ गमओ] _ [६] यदि वह (पृथ्वीकायिक) उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न हो, तो जघन्य और उत्कृष्ट बाईस हजार वर्ष की स्थिति वाले पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होता है। शेष सब कथन यावत् अनुबन्ध तक पूर्वोक्त प्रकार से जानना। विशेष यह है कि वे जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात या असंख्यात उत्पन्न होते हैं । भव की अपेक्षा से जघन्य दो भव और उत्कृष्ट आठ भव ग्रहण करता है तथा काल की अपेक्षा से जघन्य अन्तर्मुहूर्त अधिक बाईस हजार वर्ष और उत्कृष्ट एक लाख छिहत्तर हजार (१७६०००) वर्ष इतने काल तक यावत् गमनागमन करता है। [सू. ६, तृतीय गमक] ७. सो चेव अप्पणा जहन्नकालद्वितीओ जाओ, सो चेव पढमिल्लओ गमओ भाणियव्वो, नवरं लेस्साओ तिन्नि; ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं; अप्पसत्था अज्झवसाणा; अणुबंधो जहा ठिती। सेसं तं चेव।[चउत्थो गमओ]
SR No.003445
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 04 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages914
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size17 MB
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