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________________ पढमो उद्देसओ : लेश्या' प्रथम उद्देशक : 'लेश्या' प्रज्ञापनासूत्र के अतिदेश पूर्वक लेश्यातत्त्व निरूपण २. रायगिहे जाव एवं वदासि— [२] राजगृह नगर में (श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से गौतम स्वामी ने) यावत् इस प्रकार पूछा३. कति णं भंते ! लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा ! छल्लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा, एवं पनवणाए चउत्थो लेसुद्देसओ भाणियव्वो निरवसेसो। सेवं भंते ! सेवं भंते ! । ॥एगूणवीसइमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥१९-१॥ [३ प्र.] भगवन् ! लेश्याएं कितनी कही गई हैं ? [३ उ.] गौतम! लेश्याएँ छह कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं— इत्यादि, इस विषय में यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के सत्तरहवें पद का चौथा लेश्योद्देशक सम्पूर्ण कहना चाहिए। ___ 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते ___विवेचन—प्रज्ञापना-निर्दिष्ट लेश्या का तात्त्विक विश्लेषण—कृष्णादि द्रव्य के सम्बन्ध में आत्मा का परिणाम-विशेष लेश्या है। लेश्या वस्तुत: योगान्तर्गत द्रव्य रूप है। अर्थात्-मन-वचन-काय के योग के अन्तर्गत शुभाशुभ परिणाम के कारणभूत कृष्णादि वर्ण वाले पुद्गल ही द्रव्यलेश्या हैं। यह योगान्तर्गत पुद्गलों का ही सामर्थ्य है, जो आत्मा में कषायोदय को बढ़ाते हैं, जैसे पित्त के प्रकोप से क्रोध की वृद्धि होती है। अत: वही द्रव्यलेश्या, जहाँ तक कषाय है, वहाँ तक उसके उदय को बढ़ाती है। जब तक योग रहते हैं, तब तक लेश्या रहती है। योग के अभाव में (१४वें गुणस्थान में) लेश्या नहीं होती। यहाँ विचारणीय यह है कि लेश्या योगान्तर्गत द्रव्यरूप है या योगनिमित्तक कर्मद्रव्यरूप है? यदि इसे योगनिमित्तक कर्मद्रव्यरूप मानें तो प्रश्न उठता है कि यह घातीकर्मद्रव्यरूप है या अघातीकर्मद्रव्यरूप? यदि इसे घातीकर्मद्रव्यरूप मानते हैं तो सयोगीकेवली के घातीकर्म न होते हुए भी लेश्या क्यों होती है? अत: घातीकर्मद्रव्यरूप तो इसे नहीं माना जा सकता। इसे अघातीकर्मद्रव्यरूप भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि अयोगी केवली के अघाती कर्म होते हुए भी लेश्या नहीं होती। अतः लेश्या को योगान्तर्गत द्रव्यरूप मानना चाहिए।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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