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________________ उन्नीसवाँ शतक : उद्देशक - १ वर्णन है। O Q • C • ७६५ सप्तम उद्देशक का नाम 'भवन' है। इसमें चारों प्रकार के देवों में १० भवनपतियों के भवनावास, वाणव्यन्तरों के भूमिगत नगरावास, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विमानावासों की संख्या, स्वरूप, किंम्मयता आदि का संक्षिप्त वर्णन है । अष्टम उद्देशक का नाम 'निर्वृत्ति' है। इसमें जीव, कर्म, शरीर, इन्द्रिय, भाषा, मन, कषाय, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, संस्थान, संज्ञा, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, अज्ञान, योग, उपयोग—इन १९ बोलों की निर्वृत्ति (निष्पत्ति) के भेद तथा चौवीस दण्डकवर्ती जीवों में उनकी प्ररूपणा की गई है। नौवाँ उद्देशक 'करण' है। इसमें सर्वप्रथम करण के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव ये ५ भेद किये गये हैं । तदनन्तर शरीर, इन्द्रिय, भाषा, मन, कषाय, समुद्घात, संज्ञा, लेश्या, दृष्टि, वेद आदि करणों के भेदों की तथा किस जीव में कौन-सा करण कितनी संख्या में पाया जाता है, इसका लेखा-जोखा दिया गया है । तत्पश्चात् पंचविध पुद्गलकरण के भेद-प्रभेदों का निरूपण है । दसवें उद्देशक ता नाम 'वनचरसुर' (वाणव्यन्तर देव ) । इसमें वाणव्यन्तर देवों के आहार, शरीर और श्वासोच्छ्वास की समानता की चर्चा की गई है । तदनन्तर उनमें पाई जाने वाली आदि की चार लेश्याओं की तथा किस लेश्या वाला वाणव्यन्तर किस लेश्या वाले से अल्पर्द्धिक या महर्द्धिक है, इत्यादि चर्चा की गई है । कुल मिलाकर इस शतक में जीवों से सम्बन्धित लेश्या, गर्भपरिणमन आदि की ज्ञातव्य चर्चा की गई है।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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