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________________ ४३५ चौदहवां शतक : उद्देशक-१० [६ प्र.] इसी प्रकार केवलज्ञानी भी सिद्ध को जानते-देखते हैं, किन्तु प्रश्न यह है कि जिस प्रकार केवलज्ञानी सिद्ध को जानते-देखते हैं, क्या उसी प्रकार सिद्ध भी (दूसरे) सिद्ध को जानते-देखते हैं ? [६ उ.] हाँ, (गौतम !) वे जानते-देखते हैं । विवेचन केवलज्ञानी और सिद्ध के ज्ञान सम्बन्धी प्रश्नोत्तर—प्रस्तुत ६ सूत्रों में क्रमशः सात प्रश्नोत्तर अंकित हैं—(१) क्या केवली छद्मस्थ को, (२) सिद्ध छद्मस्थ को, (३) केवली अवधिज्ञानी को, (४) केवली और सिद्ध परमावधिज्ञानी को, (५) केवली और सिद्ध केवलज्ञानी को, (६) केवलज्ञानी सिद्ध को तथा (७) सिद्ध सिद्धभगवान् को जाते-देखते हैं ? इन सातों के ही शास्त्रीय उत्तर 'हाँ' में हैं। केवली और सिद्धों द्वारा भाषण, उन्मेषण-निमेषणादिक्रिया-अक्रिया की प्ररूपणा ७. केवली णं भंते ! भासेज वा वागरेज वा? हंता, भासेज वा वागरेज वा। [७ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी बोलते हैं, अथवा प्रश्न का उत्तर देते हैं ? [७ उ.] हाँ, गौतम ! वे बोलते भी हैं और प्रश्न का उत्तर भी देते हैं। ८. [१] जहा णं भंते ! केवली भासेज वा वागरेज वा तहा णं सिद्धे वि भासेज वा वागरेज वा? नो तिणटे समढे। [८-१ प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार केवली बोलते हैं या प्रश्न का उत्तर देते हैं, उसी प्रकार सिद्ध भी बोलते हैं और प्रश्न का उत्तर देते हैं ? [८-१ उ.] यह अर्थ (बात) समर्थ (शक्य) नहीं है। [२] से केणद्वेण भंते ! एवं वुच्चइ जहा णं केवली भासेज वा वागरेज वा नो तहा णं सिद्धे भासेज वा वागरेज वा ? गोयमा ! केवली णं सउट्ठाणे सकम्मे सबले सवीरिए सपुरिसक्कारपरक्कमे, सिद्धे णं अणुट्ठाणे जाव अपुरिसक्कारपरक्कमे, से तेणटेणं जाव वागरेज वा। [८-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहते हैं कि केवली बोलते हैं एवं प्रश्न का उत्तर देते हैं, किन्तु सिद्ध भगवान् बोलते नहीं हैं और न प्रश्न का उत्तर देते हैं ? [८-२ उ.] गौतम ! केवलज्ञानी उत्थान, कर्म, बल, वीर्य एवं पुरुषकार-पराक्रम से सहित हैं, जबकि सिद्ध भगवान् उत्थानादि यावत् पुरुषकार-पराक्रम से रहित हैं। इस कारण से, हे गौतम ! सिद्ध भगवान् केवलज्ञानी के समान नहीं बोलते और न प्रश्न का उत्तर देते हैं।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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