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________________ तेरहवाँ शतक : उद्देशक- ७ ३३३ [७ प्र.] भगवन् ! (बोलने से ) पूर्व भाषा कहलाती है या बोलते समय भाषा कहलाती है, अथवा बोलने का समय बीत जाने के पश्चात् भाषा कहलाती है ? [७ उ.] गौतम ! बोलने से पूर्व भाषा नहीं कहलाती, बोलते समय भाषा कहलाती है; किन्तु बोलने का समय बीत जाने के बाद भी भाषा नहीं कहलाती है। भाषा-भेदन : बोलते समय ही ८. पुव्विं भंते ! भासा भिज्जइ, भासिज्जमाणी भाषा भिज्जइ, भासासमयवीतिक्कंता भासा भिज्जइ ? गोयमा ! नो पुव्विं भासा भिज्जइ, भासिज्जमाणी भासा भिज्जइ, नो भासासमयवीतिक्कंता भासा भिज्जइ । [८ प्र.] भगवन् ! (बोलने से) पूर्व भाषा का भेदन होता है, या बोलते समय भाषा का भेदन होता है, अथवा भाषण (बोलने) का समय बीत जाने के बाद भाषा का भेदन होता है ? [८ उ.] गौतम ! (बोलने से ) पूर्व भाषा का भेदन (बिखरना) नहीं होता, बोलते समय भाषा का भेदन (बिखराव एवं फैलाव) होता है, किन्तु बोलने का समय बीत जाने पर भाषा का भेदन नहीं होता । चार प्रकार की भाषा ९. कतिविधा णं भंते ! भासा पन्नत्ता ? गोयमा ! चउव्विहा भासा पण्णत्ता, जहा - सच्चा मोसा सच्चामोसा असच्चामोसा । [९ प्र.] भगवन् ! भाषा कितने प्रकार की कही गई है ? [९ उ.] गौतम ! भाषा चार प्रकार की कही गई है । यथा— सत्य भाषा, असत्य भाषा, सत्यामृषा (मिश्र) भाषा और असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा । विवेचन — भाषाविषयक प्रश्नोत्तर — प्रस्तुत ९ सूत्रों में (सू. १ से ९ तक) में भाषा के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर प्रस्तुत किये गये हैं । भाषा आत्मा क्यों नहीं ? — भाषा आत्मा है या इससे भिन्न ?, यह प्रश्न इसलिए उठाया गया है कि जिस प्रकार ज्ञान आत्मा (जीव) से कथंचित् पृथक् होते हुए भी जीव का स्वभाव (धर्म) होने से उसे आत्मा (जीव ) कहा गया है, इसी प्रकार भाषा भी जीव के द्वारा व्यापृत होती (बोली जाती है) तथा वह जीव के बन्ध एवं मोक्ष का कारण होती है, इसलिए जीव स्वभाव (आत्मा का धर्म) होने से क्या उसे आत्मा नहीं कहा जा सकता ? अथवा भाषा श्रोत्रेन्द्रिय-ग्राह्य होने से मूर्त होने के कारण आत्मा से भिन्न है, अर्थात् — जीवस्वरूप नहीं है ? यह प्रश्न का आशय है। इसके उत्तर में यहाँ कहा गया है कि भाषा आत्मरूप ( जीवस्वभाव) नहीं है, क्योंकि यह पुद्गलमय - मूर्त होने से आत्मा से भिन्न है। जैसे जीव के द्वारा फैंका गया ढेला आदि जीव से भिन्नअचेतन है, वैसे ही जीव के द्वारा (मुख से) से निकली हुई भाषा भी जीव से भिन्न अचेतन है ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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