SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 335
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र होता है। इसलिए समयान्तर के साथ उसकी स्पर्शना नहीं होती। जो समय बीत चुका है, वह तो विनष्ट हो गया और अनागत समय अभी उत्पन्न ही नहीं हुआ। अतएव अतीत और अनागत के समय असत्स्वरूप होने से उनके साथ वर्तमान समय की स्पर्शना नहीं हो सकती। धर्मास्तिकाय की तरह अधर्मास्तिकाय के छह, आकाशास्तिकाय के छह, जीवास्तिकाय के छह और अद्धासमय के छह सूत्र कहने चाहिए। पंचास्तिकाय-प्रदेश-अद्धासमयों का परस्पर विस्तृत प्रदेशावगाहनानिरूपण : नौवाँ अवगाहनाद्वार ५२. [१] जत्थ णं भंते ! एगे धम्मऽथिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽथिकायपएसा ओगाढा ? नत्थेक्को वि। [५२-१ प्र.] भगवन् ! जहाँ धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ (अवगाहन करके स्थित) है, वहाँ धर्मास्तिकाय के दूसरे कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? [५२-१ उ.] गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का दूसरा एक भी प्रदेश अवगाढ नहीं है। [२] केवतिया अधम्मऽथिकायपएसा ओगाढा ? एक्को । [५२-२ प्र.] भगवन् ! वहाँ अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? [५२-२ उ.] (गौतम ! ) वहाँ एक प्रदेश अवगाढ होता है। [३] केवतिया आगासऽस्थिकाय ? एक्को । [५२-३ प्र.] (भगवन् ! वहाँ ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते है ? [५२-३ उ.] (उसका) एक प्रदेश अवगाढ होता है। [४] केवतिया जीवऽथि० ? अणंता। [५२-४ प्र.] (भगवन् ! ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [५२-४ उ.] (गौतम ! उसके) अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६१३ (ख) भगवतीसूत्र (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २२०९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy