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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक-४ २८७ परस्पर मिलना बिछुड़ना पुद्गलास्तिकाय का गुण है। कठिन शब्दार्थ-भासुम्मेस-भाषण तथा उन्मेष-नेत्रव्यापारविशेष । ठाण-निसीयण-तुयट्टण-ठाणस्थित होना, कायोत्सर्ग करना, निसोयण-बैठना, तुयट्टण—शयन करना, करवट बदलना। एगत्तीभावकरणताएकत्रीभावकरण—एकाग्र करना। भायणभूए-भाजनभूत-आधारभूत। आणापाणूणं-आन-प्राणश्वासोच्छ्वासों का। पंचास्तिकायप्रदेश-अद्धासमयों का परस्पर जघन्योत्कृष्टप्रदेश-स्पर्शनानिरूपण : आठवाँ अस्तिकायस्पर्शनाद्वार २९. [१] एगे भंते ! धम्मऽस्थिकायपएसे केवतिएहिं धम्मऽस्थिकायपएसेहिं पुढे ? गोयमा ! जहन्नपए तीहिं, उक्कोसपए छहिं। [२९-१ प्र.] भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, कितने धर्मास्तिकाय के प्रदेशों द्वारा स्पृष्ट (छुआ हुआ) होता है ? .[२९-१ उ.] गौतम ! वह जघन्य पद में तीन प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [२] केवतिएहिं अधम्मऽत्थिकायपएसेहिं पुढे ? जहन्नपए चउहि, उक्कोसपदे सत्तहिं। [२९-२ प्र.] (भगवन् ! धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश), अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [२९-२ उ.] (गौतम ! वह) जघन्य पद में चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात अधर्मास्तिकाय प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [३] केवतिएहिं आगासऽत्थिकायपदेसेहिं पुढे ? सत्तहिं। [२९-३ प्र.] वह (धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [२९-३ उ.] (गौतम ! वह) सात(आकाश-)प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [४] केवतिएहिं जीवऽत्थिकायपदेसेहिं पुढे ? १. (क) तत्त्वार्थसूत्र (पं. सुखलालजी) अ. ५, सू. १ से १० तक (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २१९२-९६ (ग) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६०८ २. वही, अ. वृत्ति, पत्र ६०८
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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