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अष्टम शतक : उद्देशक-९
[२० उ.] गौतम ! दूध और पानी आदि की तरह एकमेक हो जाना सर्वसंहननबंध कहलाता है। इस प्रकार सर्वसंहननबंध का स्वरूप है। यह आलीनबंध का कथन हुआ।
२१. से किं तं सरीरबंधे? सरीरबंधे दुविहे, पण्णत्ते, तं जहा—पुव्वप्पओगपच्चइए य पडुप्पन्नप्पओगपच्चइए य ।
[२१ प्र.] भगवन् ! शरीरबंध किस प्रकार का है ? __[२१ उ.] गौतम ! शरीरबंध दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—पूर्वप्रयोग प्रत्ययिक और (२) प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिक।
२२. से किं तं पुव्वप्पओगपच्चइए?
पुव्वप्पओगपच्चइए, जं णं नेरइयाणं संसारत्थाणं सव्वजीवाणं तत्थ तत्थ तेसु तेसु कारणेसु समोहन्नामाणाणं जीवप्पदेसाणं बंधे समुप्पज्जड़। से त्तं पुव्वप्पयोगपच्चइए।
[२२ प्र.] भगवन् ! पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध किसे कहते हैं ? ' [२२ उ.] गौतम! जहाँ-जहाँ जिन-जिन कारणों ने समुद्घात करते हुए नैरयिक जीवों और संसारस्थ सर्वजीवों के जीवप्रदेशों का जो बंध सम्पन्न होता है, वह पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध कहलाता है। यह है पूर्वप्रयोगप्रत्ययिकबंध। .
२३. से किं तं पडुप्पन्नपयोगपच्चइए?
पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए, जं णं केवलनाणिस्स अणगारस्स केवलिसमुग्घाएणं समोहयस्य, ताओ समुग्घायाओ पडिनियत्तमाणस्स, अंतरा पंथे वट्टमाणस्स तेया कम्माणं बंधे समुप्पज्जइ।
किं कारणं?
ताहे से पएसा एगत्तीगया भवंति त्ति।सेत्तं पडुप्पन्नप्पयोगपच्चइए।से त्तं सरीरबंधे। [२३ प्र.] भगवन् ! प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिक किसे कहते हैं ?
[२३ उ.] गौतम ! केवलीसमुद्घात द्वारा समुद्घात करते हुए और उस समुद्घात से प्रतिनिवृत्त होते (वापस लौटते) हुए बीच के मार्ग (मन्थानावस्था) में रहे हुए केवलज्ञानी अनगार के तैजस और कार्मण शरीर का जो बंध सम्पन्न होता है, उसे प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिकबंध कहते हैं। [प्र.] (तैजस और कार्मण शरीर के बंध का) क्या कारण है ? [उ.] उस समय (आत्म) प्रदेश एकत्रीकृत (संघातरूप) होते हैं, जिससे (तैजसकार्मण-शरीर का) बंध होता है। यह हुआ प्रत्युत्पन्नप्रयोगप्रत्ययिकबंध का स्वरूप। यह शरीरबंध का कथन हुआ।
विवेचनप्रयोगबंध : प्रकार और भेद-प्रभेद तथा उनका स्वरूप प्रस्तुत १२ सूत्रों (सू. १२ से २३ तक) में प्रयोगबंध के तीन भंग तथा सादि-सपर्यवसितबंध के चार भेद एवं उनके प्रभेद और स्वरूप का